Wednesday, June 29, 2011

डीएवीपी इम्पैनलमेंट: आवेदन देने से पूर्व ध्यान देने योग्य बातें


प्रिय प्रकाशकों, यदि आप भी अपने आखबार अथवा पत्रिका के लिए डीएवीपी में इम्पैनल्ड करवाना चाहते हैं तो निम्नलिखित बातों का विषेश ध्यान रखें। यह डीएवीपी की ‘नई विज्ञापन नीति 2007’ के अनुरुप है।

पैनल में शामिल करने के लिए मानदण्ड:
1. क्षेत्रिय भाषाओं जैसे कि डोगरी, बोडो, गढ़वाली, कश्मीरी, खासी, कोंकणीं, मैथिली, मणीपुरी, मिजो, नेपाली, राजस्थानी, संस्कृत, संथाली, सिन्धी, उर्दू एवं राज्य सरकारों द्वारा प्रमाणित जनजातीय भाषाओं के समाचारपत्रों को विषेश प्रोत्साहन देने के लिए या जम्मू एवं कश्मीर, अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूहों तथा उत्तर-पूर्व राज्यों में प्रकाशित समाचारपत्रों को छ: माह के नियमित एवं अबाधित प्रकाशन के पश्चात सूचीबद्धता हेतु विचार किया जा सकता है। सभी क्षेत्रीय एवं अन्य भाषाई लघु एवं मध्यम समाचारपत्रों के मामले में अहर्ता अवधि 18 माह की रहेगी।

2. एक लाख एवं अधिक की प्रसार-संख्या वाले व्यापक परिचालित समाचारपत्रों की पाठक कार्यक्षमता का लाभ उठाने के लिए ऐसे समाचारपत्रों को प्रकाशन की एक वर्ष की अवधि क् बाद सूचीबद्धता के लिए पात्र बनाया जाएगा। ऐसे समाचारपत्रों के प्रसार संख्या सबंधी दावे को तभी स्वीकार किया जाएगा जब वे आर एन आई या एबीसी द्वारा प्रमाणित होंगे।

3. उन्हें प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 के उपबंधों का अनुपालन करना होगा। 3. विगत छ: वर्षों में डीएवीपी ने उन्हे अयोग्य घोषित ना किया हो और न ही उनकी तरफ डीएवीपी की कोई लेनदारी बकाया हो।

4. अयोग्यता की अवधि छ: साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।

5. उन्हें आवेदन के साथ भारतीय समाचार पत्रों के पंजीयक के कार्यालय द्वारा अस्थापित घोषित न किया गया होना चाहिए।

6. आवेदक को भारतीय समाचार पत्रों के पंजीयक द्वारा प्रकाशन के नाम जारी पंजीकरण की प्रति भी प्रस्तुत करनी होगी।

7. पैनलबद्ध होने के लिए वांछित विवरण जैसे समाचारपत्र का आकार, भाषा, आवधिकता, प्रिंट ऐरिया तथा प्रिंटिंग प्रेस आदि का ब्यौरा भी दिया जाना चाहिए।

8. मुद्रित सामग्री तथा फोटोग्राफ सुपाठ्य, स्वच्छ व स्पष्ट हो तथा धब्बे, दोहरी छपाई और काट-छांट से रहित होनी चाहिए।

9. इसमें अन्य अंको से समाचार सामग्री अथवा लेखों की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

10. इसमें अन्य पत्र- पत्रिकाओं से समाचार सामग्री अथवा लेखों की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

11. इसके मुखपत्र पर समाचारपत्र का शीर्षक ( मास्टहैड) और प्रकाशन का स्थान, तिथि तथा  दिन मुद्रित होना चाहिए, इसमें भारतीय समाचारपत्रों के पंजीयक के कार्यालय की पंजीकरण संख्या, खण्ड एवं अंक संख्या , पृष्ठों की संख्या तथा समाचारपत्र-पत्रिका का मूल्य  भी मुद्रित होना चाहिए।

12.समाचारपत्र में प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत प्रिंट लाइन मुद्रित होनी चाहिए। (च) अन्दर के पृष्ठों में पृष्ठ संख्या, पृष्ठ शीर्षक तथा प्रकाशन तिथि मुद्रित होनी चाहिए। अनेक संस्करणों वाले समाचारपत्रों के लिए प्रकाशन का स्थान भी अन्दर के पृष्ठों में छपा होना चाहिए।

13. सभी प्रकाशनों में संपादकीय मुद्रित होना चाहिए।

नोट: पैनल में शामिल होने/दर नवीनीकरण के लिए आवेदन देने से पहले प्रकाशक को सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि नेति में दी गई सभी शर्तों को उनका प्रकाशन पूरा करता हो। आवेदन पत्र सभी दृष्टि से पूरा होना चाहिए। अपूर्ण  आवेदन पत्रों पर विचार नहीं किया जाएगा।
पैनल में शामिल होने के लिए आवेदन एक वर्ष में दो बार ही किया जा सकता है- पहली बार फरवरी के अंत में तथा द्सरी बार अगस्त के अंत में। फरवरी अंत से पूर्व किए गए आवेदन पर उसी वर्ष के माह में  विचार किया जाएगा तथा उनका अनुबंध उसी वर्ष की 1 जुलाई से शुरू होगा तथा अगस्त अंत से पूर्व किए गए आवेदनों पर नवंबर में विचार किया जाएगा।

यदि इम्पैनलमेंट आवेदन के संबंध में आप किसी प्रकार की जानकारी विस्तृत रूप से चाहते हैं तो संपर्क करें।
लीपा डेस्क

Considerable Points Before Applying for DAVP Empanelment


Dear Publishers, You are advised to consider all these points before applying for empanelment of your newspaper in DAVP. It is according to ‘new advertisement policy 2007’.

All Newspapers/Journals seeking empanelment should comply with following:
1. It must have been uninterruptedly and regularly under publication for a period of not Less than 36 months save as under:
(Note: The qualifying period shall be only 18 months)
    2. To provide special encouragement for newspapers in languages like Bodo, Garhwali, Dogri, Kashmiri, Khasi, Konkani, Maithili, Manipuri, Mizo, Nepali, Rajasthani, Sanskrit, Santhali, Sindhi, Urdu and tribal languages/dialects as certified by State Government OR newspapers published in J&K, Andaman & Nicobar Islands And North Eastern States can be considered for empanelment after 6 months of regular And uninterrupted publication. In the case of all regional and other language small & Medium newspapers, the qualifying period shall be 18 months.
      3. In order to tap the readership potential of mass circulated newspapers, with a Circulation of one lakh and above, such newspapers be made eligible for empanelment after a period of one year of regular and uninterrupted publication. The circulation claim of Such newspapers will be considered only if certified by RNI or ABC.
        4. It should comply with the provisions of the Press & Registration of Books Act, 1867.
          5. It should not have been disqualified by DAVP in the last six years and should not be a defaulter of DAVP.
            6. The period of disqualification should not exceed six years.
              7. It should not have been established by RNI at the time of applying.
                8. The applicant should also furnish a copy of the Certificate of Registration issued by the RNI In the name of the publisher.
                  9. The details of the paper like size, language, periodicity, print area and details of printing press etc. as asked for in empanelment form may be given.

                    Further, it must be substantiated that the paper is being published at a reasonable standard.
                    Reasonable standard, inter alia, means that:

                    10. The Print matter and photographs should be legible, neat, clear and without smudges, overwriting, and tampering.
                      11. There should be no repetition of news items or articles from other issues.
                        12. There should be no reproduction of news items or articles from other newspaper/journals and the source of news/articles should be mentioned.
                          13. Masthead on its front page should carry the title of the newspaper, place, date and day of publication; it should also carry RNI Registration Number, VOll, issue, number of pages and price of newspaper/journals;
                            14. The newspaper should carry imprint line as required under PRB Act; and Inner pages must carry page number, title of the paper and date of publication. For multi- editions place of publication must be mentioned in inner pages also.
                              15. All the publications must carry editorial.

                                NOTE: The publisher must ensure that his/her publication fulfils all the norms laid down in the Policy before applying for empanelment rate renewal. The application form must be complete in all respects with supporting documents. Incomplete applications will not be considered.
                                Fresh applications for empanelment may be made twice a year i.e. once at the end of February and other by the end of August. The Applications made before February end will be considered in month of May of the same year and their contract will start w.e.f. 1st July of the same year and applications made before August end will be considered in November and their contract will start w.e.f 1st January of the next year.

                                Monday, June 27, 2011

                                लीपा के दबाव में डीएवीपी ने पहली बार दिखाई पारदर्शिता

                                “मैं पिछले सात सालों से अख़बार चला रहा हूँ, कई बार डीएवीपी के लिए आवेदन कर चुका हूँ, हर बार बिना कारण बताये मेरा अखबार रिजेक्ट होता रहा, लेकिन केवल लीपा के दबाव की वजह से मेरा अख़बार इस बार एम्पैनल हुआ।“
                                “मैं निश्चिन्त था की हर बार की तरह इस बार भी मेरा अख़बार एम्पैनल नहीं होगा, मैंने अपने  मामले को कोर्ट में ले जाने के लिए लीपा से आग्रह भी किया था क्योंकी मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कलर अख़बार की पूअर प्रिंटिंग कैसे हो सकती है परन्तु लीपा को बहुत बहुत धन्यवाद कि उसकी वजह से मेरा अखबार एम्पैनल हो गया।“

                                “मैंने तीसरी  बार डीएवीपी  में अपने अखबार के एम्पैनलमेंट के लिये आवेदन दिया था, इस बार भी रिजेक्ट हो गया लेकिन मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मै तुरंत ही जान पाया कि मेरा अखबार किन वजहों से रिजेक्ट हुआ, साथ ही मै अब डीएवीपी में जाकर अपनी  फाईल पर हुई  कारवाई को भी देख सकूँगा, यह सब कुछ केवल लीपा की  ईमानदार कोशिशों की वजह से हुआ है।“

                                ऐसे कई प्रकाशकों ने एम्पैनलड (अगस्त 2010 में आवेदित) अखबारों की सूची जारी होने के बाद लीपा को अपने-अपने शब्दों में धन्यवाद दिया। हमने ऐसे प्रकाशकों के नामों की जानकारी इसलिए  नहीं दी है ताकि उनके हितों पर किसी भी प्रकार की आंच न आये। पहले डीएवीपी  के बारे में प्रसिद्ध बात थी कि डीएवीपी के इर्द-गिर्द दलालों का ऐसा जाल बुना हुआ है कि  जब तक आप उनको चढावा न चढ़ा दें आपका अखबार एम्पैनलड नहीं हो सकता क्योंकी यह चढ़ावा ऊपर से लेकर नीचे तक डीएवीपी के अधिकारीयों मे बांटा जाता है। अगर आपका अखबार दैनिक है तो आपको मोटा चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है इसी तरह साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक अखबारों के लिए भी चढ़ावे के रूप में अलग-अलग रेट फिक्स था। अखबार का मालिक हो, प्रकाशक हो, सम्पादक हो या तीनो हो, इनको डीएवीपी में जाकर दलालों के चंगुल में फँसना एक अनिवार्य शर्त बन गया था। अगर कोई प्रकाशक इन दलालों को अपने आस-पास फटकने नहीं देता तो उसके सामने विकल्प के तौर पर यही होता की आप आवेदन करते रहें, आपका अखबार रिजेक्ट होता रहेगा।

                                रिजेक्शन के बाद से किसी भी प्रकाशक को सूचित तक नहीं किया जाता था की आखिर आवेदन में क्या कमी रह गयी थी कि उसका अखबार रिजेक्ट कर दिया गया। चढ़ावा नहीं चढाने पर 'आवेदन पर आवेदन और रिजेक्शन पर रिजेक्शन ' जैसी एक अनौपचारिक पद्धति डीएवीपी मे विकसित हो गयी थी।

                                लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन (लीपा) जब से अस्तित्व में आया, हमने सबसे पहला संकल्प लिया की डीएवीपी में प्रकाशकों को दलालों के चंगुल बचाना है। यही वजह थी कि डीएवीपी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी एसोसिएशन ने प्रकाशकों की मदद के लिए डीएवीपी में कैम्पेन किया और हमने डीएवीपी में खड़े होकर प्रकाशकों से कहा कि आप किसी भी दलाल या एजेंट के बहकावे में न आयें, लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन आपके साथ है यदि इस बार आपके अखबार के साथ कोई अन्याय हुआ तो हम आपकी तरफ से अदालत तक का दरवाजा खटखाटाएंगे।

                                हमारे द्वारा किये गए कैम्पेन, देश भर के हजारों प्रकाशकों और डीएवीपी के अधिकारियों को भेजे जा रहे हमारे SMS और ईमेल के दबाव का असर हुआ कि डीएवीपी को एम्पैनलमेंट पद्धति में पारदर्शिता लानी ही पड़ी। डीएवीपी ने अब हर रिजेक्शन का कारण लिखित रूप से प्रकाशकों को देगी साथ ही यदि कोई प्रकाशक अपने अखबार के रिजेक्शन का कारण तत्काल देखना चाहे तो डीएवीपी की वेबसाईट पर एप्लीकेशन न0 के माध्यम से देख सकता है।

                                लीपा के दबाव में पहली बार डीएवीपी, प्रकाशकों को यह अवसर दे रही है कि रिजेक्टेड अखबार के प्रकाशक सीधे तौर पर अपनी फाइल पर हुई कार्रवाई देख सकेंगे। यह इम्पैनलमेंट पद्धति में पारदर्शिता लाने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन पर्याप्त नहीं है।

                                मेरा मानना है कि यह पद्धति ही गलत है कि आवेदित अखबार में कोई कमी हो तो उसे सीधे तौर पर रिजेक्ट कर दिया जाए। पीआईबी सहित अमूमन सभी विभागों में ऐसा होता है कि आपने आवेदन किया और यदि आपके आवेदन में कोई त्रुटि रह गई है तो सम्बधित विभाग उस त्रुटि के सन्दर्भ में आपसे सवाल करता है, यदि आप उस त्रुटि को सही कर लेते है तो आपके आवेदन पर आगे की करवाई की जाती है।

                                जबकि डीएवीपी बिना अवसर दिए, बिना त्रुटि बताये सीधे-सीधे अखबार को रिजेक्ट कर देती है। इससे प्रकाशकों को फिर से आवेदन हेतु पूरी प्रकिया दुहराना पड़ता है। इस कार्य को प्रकाशकों द्वारा तबतक दुहराया जाता है जब तक उनका अखबार सूचीबद्ध न हो जाय। यह एक पीड़ादायक सफर बन जाता है जिसका रास्ता अंतहीन है।

                                आमतौर से डीएवीपी में एक भ्रम और फैलाया जाता है की कम प्रसार वाले अखबार पत्रकारिता कम और अन्य कार्यों में ज्यादा संलिप्त होते है हकीकत यह है कम प्रसार वाले अखबार भी उतने ही महत्व और गरिमा रखते है जितना ज्यादा प्रसार वाले अखबार। हमारे देश में इतनी भाषायें बोली जाती है कि किसी भी एक अखबार द्वारा सभी भाषाओं में खबर प्रकाशित करना कतई संभव नहीं है। लघु समाचारपत्रों ने नक्सली समस्या, शिक्षा और भ्रष्टाचार से जुडी कई ऐसे खबरों को उजागर किया है जिससे समाज का व्यापक हित हुआ है।

                                ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ प्रकाशकों के हितों के लिए कटिबद्ध है। डीएवीपी में हुआ सुधार आंशिक है, अभी भी डीएवीपी में भ्रष्टाचार के फलने-फूलने की शिकायतें हमारे पास ढेर सारी है। ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ अपने उद्देश्य और विजन को लेकर बिलकुल स्पष्ट है। हम हर हाल में प्रकाशकों के हितों की सुरक्षा के लिए कार्य करते रहेंगे।
                                लेखक श्री सुभाष सिंह लीड इंडिया दैनिक, इनसाइड स्टोरी पाक्षिक और सेंसेक्स टाइम बिजनेस पाक्षिक के प्रकाशक हैं एवं लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। श्री सुभाष सिंह से  subhash_singh27@yahoo.comThis e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it पर सम्पर्क किया जा सकता है।

                                Thursday, June 2, 2011

                                टाइम्स ऑफ इंडिया की दादागिरी: लघु समाचारपत्रों को कुचलने की साजिश


                                देश का सबसे बड़ा अखबार होने का दावा करने वाले अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की कंपनी बैनेट कोलमैन लघु अखबारों के लिए काम करने वाली एसोसिएशन ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का दमन करने पर उतारू है। टाइम्स ऑफ इंडिया भारत  में सबसे अधिक लोकप्रिय अखबार होने का दावा करता है। लेकिन इस अखबार को चलाने वाली कंपनी बैनेट कोलमैन लघु समाचारपत्रों के हित की बात उठाने वाले संगठन ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ को धनबल और बाहुबल के दम पर कुचल देना चाहती है।

                                बैनेट कोलमैन एण्ड कंपनी ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ को नहीं चलने देना चाहती क्योंकि ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने आते ही लघु एवं मंध्यम समाचारपत्रों के विकास और उनके लिए न्याय की मांग शुरू कर दी। इतना ही नहीं ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने विज्ञापन के लिए काम करने वाली सरकारी संस्था डीएवीपी में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ जब हल्ला बोला तो वहां से लाभ उठाने वाली कई ताकतों का हित प्रभावित हुआ और इन्ही लोगों ने मिलकर ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन को बंद करवाने की साजिश रची। इनमें सबसे अग्रणी रही टाइम्स ऑफ इंडिया की कंपनी बैनेट कोलमैन एण्ड कंपनी।

                                बैनेट कोलमैन ने बड़ी सोची समझी साजिश के तहत ’लीड इंडिया ग्रुप’ के खिलाफ फर्जी मामला बनाया और उसने अदालत के सामने गलत तथ्य पेश किए और दावा किया कि ’लीड इंडिया ग्रुप’ ’लीड इंडिया’ नाम को इस्तेमाल करने का योग्य पात्र नहीं है। ’लीड इंडिया’ पर दावेदारी करने का अपना आधार बैनेट कोलमैन ने अगस्त 2007 से मई 2008 में चलाए गए एक कैंपेन को बनाया और इसी आधार पर भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड अखबार और सोसाइटी रजिक्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे ऑर्डर भी पास करवा लिया।
                                जबकि कानून के जानकार और विशेषज्ञों ने इस बात पर हैरानी जताई कि कैसे कोई कैंपेन चलाने के आधार पर एक पंजीकृत अखबार का प्रकाशन रूकवा सकता है। यह सरासर कानून का उल्लंघन है। जबकि यहां किसी प्रकार के ट्रेडमार्क या कॉपी राइट का उल्लंघन नहीं हुआ। बैनेट कोलमैन का ’लीड इंडिया’ कैम्पेन पर काम करने का बिल्कुल इरादा नहीं था, बल्कि वो येलो जर्नलिज़्म और पेड न्पूज़ के कारण गिरती अपनी साख को बचाने के लिए लोगों की भावनाओं से खेल रहे था। उसके लिए उन्होंने ’लीड इंडिया’ नाम से एक कैंपेन किया ताकि इसकी सहायता से वो अपनी ब्रांड बिल्डिंग कर सके। और हुआ भी ऐसा ही। मकसद निकलने के बाद इस कैंपेन को बैनेट कोलमैन ने छोड़ दिया और टीच इंडिया नाम से दूसरा कैंपेन शुरू किया। इसके बाद भी कई और कैंपेन शुरू किए गए ताकि इनके माध्यम से लोगों को कथित तौर पर यह संदेश देता रहे कि वह एक विश्वसनीय अखबार है।

                                इतना ही नही बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) ने झूठ की सारी हदें पार करते हुए अदालत में खुद को रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क बताया। जबकि सच्चाई यह है कि ट्रेडमार्क और कॉपीराइट ऑफिस ने बैनेट कोलमैन द्वारा ’लीड इंडिया’ नाम से एप्लाई किए गए ट्रेडमार्क पर यह कहते हुए ऑब्जेक्शन लगाया है, कि ‘लीड इंडिया’ नाम पहले से ही किसी और के द्वारा प्रयोग किया जा रहा है। बैनेट कोलमैन ने यह बात अदालत से धूर्धतापूर्वक छुपाते हुए ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ सहित ‘लीड इंडिया’ अखबार, ’लीड इंडिया ग्रुप’ के खिलाफ स्टे पास करवा लिया।

                                बैनेट कोलमैन द्वारा ’लीड इंडिया’ ट्रेडमार्क के लिए किये गये आवेदन पर ट्रेडमार्क ऑफिस द्वारा लगाए गए ऑब्जेक्शन की कॉपी देखने के लिए क्लिक करें।

                                असल में ’लीड इंडिया’ हिंदी व अंग्रेजी भाषा में छपने वाला आरएनआई (Registrar of Newspapers for India ) में पंजीकृत दैनिक अखबार है। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ऐपीजे अब्दुल कलाम ने 2000 के शुरूआती दशक में ही लीड इंडिया 20-20 का नारा दिया था और युवाओं से आवाहन किया था कि वो राष्ट्र के विकास में सहभागी बने। ’लीड इंडिया ग्रुप’ के चेयरमैन और ’लीड इंडिया’ दैनिक अखबार के प्रकाशक एवं संपादक सुभाष सिंह ने जून 2007 में एक साक्षात्कार में ’दुर्गम खबर’ के संपादक द्वारा पूछे गए सवाल पर कि ’आपकी भविष्य की क्या योजनाए हैं?, के जवाब में कहा था कि उनकी बहुत इच्छा है कि वो एक दैनिक अखबार निकाले जिसका नाम ’लीड इंडिया’ हो। यह साक्षात्कार 2007 में जुलाई के प्रथम सप्ताह में रष्ट्रीय अखबार ’दुर्गम खबर’ में छपा था।

                                सुभाष सिंह का साक्षात्कार पढ़ने के लिए क्लिक करें। 

                                इसके उपरांत जनवरी 2008 में श्री सिंह ने ’लीड इंडिया’ नाम से अखबार निकालने के लिए आरएनआई में टाइटल लेने के लिए आवेदन किया। जो तमाम प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद फरवरी 2008 में सुभाष सिंह को ’लीड इंडिया’  नाम से टाइटल उपलब्ध करा दिया गया।

                                सुभाष सिंह द्वारा ‘लीड इंडिया’ टाइटल के लिए RNI  में दिए गए आवेदन को देखने के लिए क्लिक करें। 

                                RNI द्वारा सुभाष सिंह को ‘लीड इंडिया’ टाइटल फरवरी 2008 में उपलब्ध करा दिया गया, उसकी कॉपी RNI की वेबसाइट पर देखने के लिए क्लिक करें।
                                यहां यह भी बताना अनिवार्य है कि आरएनआई टाइटल देने के लिए बेहद सख्त प्रक्रिया अपनाता है। आरएनआई टाइटल देने के पूर्व यह देखता है कि आवेदित नाम से पूरे देश में कोई अखबार अथवा ट्रेडमार्क पंजीकृत ना हो साथ ही वह टाइटल किसी सरकारी विभाग, एजेंसी या बहुत प्रसिद्ध नाम से बिल्कुल ना मिलता हो। जब इन सभी मानदण्डों को प्रार्थी पूरा करता है तब जाकर आरएनआई द्वारा उसके पक्ष में टाइटल पंजीकृत किया जाता है।

                                टाइटल उपलब्ध कराने के लिए RNI  द्वारा जिस गाईडलाइन का अनुसरण किया जाता है उसे पढ़्ने के लिए क्लिक करें। 

                                टाइटल देने के दो वर्ष के भीतर प्रकाशक को उस नाम से अखबार अथवा पत्रिका का प्रकाशन करना अनिवार्य होता है। लीड इंडिया ग्रुप को ’लीड इंडिया’ नाम से टाइटल फरवरी 2008 में ही मिल गया था, तब तक टाइम्स ऑफ इंडिया ने ट्रेडमार्क के लिए एप्लाई भी नहीं किया था। ’लीड इंडिया दैनिक का प्रथम अंक 16 अगस्त 2009 को हिंदी भाषा में प्रकाशित हुआ।

                                ‘लीड इंडिया' हिंदी दैनिक का प्रथम अंक पढ़ने के लिए क्लिक करें।

                                ‘लीड इंडिया' हिंदी दैनिक का RNI द्वारा जारी पंजियन प्रमाणपत्र देखने के लिए क्लिक करें।

                                बैनेट कोलमैन द्वारा ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ के खिलाफ रची गई साजिश का भांडाफोड़ इस बात से ही हो जाता है कि ’लीड इंडिया’ दैनिक अखबार अगस्त 2009 से लगातार निकलता रहा और बैनेट कोलमैन ने किसी प्रकार का विरोध नहीं जताया। लेकिन जैसे ही अक्टूबर 2010 में ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का गठन हुआ और इसके माध्यम से डीएवीपी में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी वैसे ही बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) को ’लीड इंडिया’  नाम पर एतराज जताते हुए कोर्ट जा पहुंचा। ’लीड इंडिया ग्रुप’ को बिना सूचित किए 30 मार्च 2011 में वह दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे लेने में सफल रहा।

                                ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का पंजियन प्रमाण पत्र देखने के लिये क्लिक करें।
                                दो साल से चल रहे ’लीड इंडिया’  दैनिक अखबार पर बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) को कोई एतराज नहीं था लेकिन ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ के माध्यम से जैसे ही लघु प्रकाशकों के हित की बात करनी शुरू की बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) से सहन नहीं हुआ और ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ को कुचलने के लिए सारे हथकंडे अपनाने में लग गया। कुछ ही महीनों में ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने लघु प्रकाशकों के लिए इतना काम कर दिया था कि वो अपने आप में प्रशंसनीय है।

                                निशुल्क कार्य सहायता करने वाले ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने पहली बार समाज का ध्यान इस ओर खींचा कि कैसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ और अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने वाले लघु एवं मध्यम अखबार के प्रकाशक उत्पीड़न, अन्याय और भ्रष्टाचार का शिकार होते हैं। विडम्बना यह भी है कि आज तक इन प्रकाशकों के लिए किसी की संवेदना नहीं जागी क्योंकि इस विषय को कभी समाज के सामने रखा ही नहीं गया। जब ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने यह काम किया तो उसके खिलाफ कई ताकतें खड़ी हो गई हैं।

                                लेकिन यदि ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ की आवाज इस तरह बंद की जाएगी तो लोकतंत्र की हत्या का इससे बड़ा उदाहरण और कोई नहीं होगा। गली देहात और दूर दराज के इलाकों में लोगों की आवाज उठाने वाले लघु समाचारपत्रों के साथ भी नाइंसाफी होगी। ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ में 1100 से भी ज्यादा अखबार सदस्य के रूप में जुड़े है। जिनके हित की रक्षा सदा लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ करती है। यह जरूरी है कि लघु प्रकाशकों के हितों की रक्षा की जाए और ऐसे षड़यंत्रो को सफल होने से रोका जाए। क्योंकि यह स्वस्थ समाचार व लोकतंत्र के लिए बेहद आवश्यक है। यदि छोटे अखबारों की आवाज बंद हो गई तो देश के कुछ अखबार अपनी मोनोपॉली को देश पर थोपने के कार्य में संलिप्त रहेंगे।

                                लेखक श्री राजकुमार अग्रवाल हमारा मैट्रो दैनिक समाचार पत्र के संपादक हैं। श्री राजकुमार अग्रवाल सेhamarametro@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।