Thursday, June 2, 2011

टाइम्स ऑफ इंडिया की दादागिरी: लघु समाचारपत्रों को कुचलने की साजिश


देश का सबसे बड़ा अखबार होने का दावा करने वाले अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की कंपनी बैनेट कोलमैन लघु अखबारों के लिए काम करने वाली एसोसिएशन ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का दमन करने पर उतारू है। टाइम्स ऑफ इंडिया भारत  में सबसे अधिक लोकप्रिय अखबार होने का दावा करता है। लेकिन इस अखबार को चलाने वाली कंपनी बैनेट कोलमैन लघु समाचारपत्रों के हित की बात उठाने वाले संगठन ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ को धनबल और बाहुबल के दम पर कुचल देना चाहती है।

बैनेट कोलमैन एण्ड कंपनी ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ को नहीं चलने देना चाहती क्योंकि ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने आते ही लघु एवं मंध्यम समाचारपत्रों के विकास और उनके लिए न्याय की मांग शुरू कर दी। इतना ही नहीं ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने विज्ञापन के लिए काम करने वाली सरकारी संस्था डीएवीपी में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ जब हल्ला बोला तो वहां से लाभ उठाने वाली कई ताकतों का हित प्रभावित हुआ और इन्ही लोगों ने मिलकर ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन को बंद करवाने की साजिश रची। इनमें सबसे अग्रणी रही टाइम्स ऑफ इंडिया की कंपनी बैनेट कोलमैन एण्ड कंपनी।

बैनेट कोलमैन ने बड़ी सोची समझी साजिश के तहत ’लीड इंडिया ग्रुप’ के खिलाफ फर्जी मामला बनाया और उसने अदालत के सामने गलत तथ्य पेश किए और दावा किया कि ’लीड इंडिया ग्रुप’ ’लीड इंडिया’ नाम को इस्तेमाल करने का योग्य पात्र नहीं है। ’लीड इंडिया’ पर दावेदारी करने का अपना आधार बैनेट कोलमैन ने अगस्त 2007 से मई 2008 में चलाए गए एक कैंपेन को बनाया और इसी आधार पर भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड अखबार और सोसाइटी रजिक्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे ऑर्डर भी पास करवा लिया।
जबकि कानून के जानकार और विशेषज्ञों ने इस बात पर हैरानी जताई कि कैसे कोई कैंपेन चलाने के आधार पर एक पंजीकृत अखबार का प्रकाशन रूकवा सकता है। यह सरासर कानून का उल्लंघन है। जबकि यहां किसी प्रकार के ट्रेडमार्क या कॉपी राइट का उल्लंघन नहीं हुआ। बैनेट कोलमैन का ’लीड इंडिया’ कैम्पेन पर काम करने का बिल्कुल इरादा नहीं था, बल्कि वो येलो जर्नलिज़्म और पेड न्पूज़ के कारण गिरती अपनी साख को बचाने के लिए लोगों की भावनाओं से खेल रहे था। उसके लिए उन्होंने ’लीड इंडिया’ नाम से एक कैंपेन किया ताकि इसकी सहायता से वो अपनी ब्रांड बिल्डिंग कर सके। और हुआ भी ऐसा ही। मकसद निकलने के बाद इस कैंपेन को बैनेट कोलमैन ने छोड़ दिया और टीच इंडिया नाम से दूसरा कैंपेन शुरू किया। इसके बाद भी कई और कैंपेन शुरू किए गए ताकि इनके माध्यम से लोगों को कथित तौर पर यह संदेश देता रहे कि वह एक विश्वसनीय अखबार है।

इतना ही नही बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) ने झूठ की सारी हदें पार करते हुए अदालत में खुद को रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क बताया। जबकि सच्चाई यह है कि ट्रेडमार्क और कॉपीराइट ऑफिस ने बैनेट कोलमैन द्वारा ’लीड इंडिया’ नाम से एप्लाई किए गए ट्रेडमार्क पर यह कहते हुए ऑब्जेक्शन लगाया है, कि ‘लीड इंडिया’ नाम पहले से ही किसी और के द्वारा प्रयोग किया जा रहा है। बैनेट कोलमैन ने यह बात अदालत से धूर्धतापूर्वक छुपाते हुए ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ सहित ‘लीड इंडिया’ अखबार, ’लीड इंडिया ग्रुप’ के खिलाफ स्टे पास करवा लिया।

बैनेट कोलमैन द्वारा ’लीड इंडिया’ ट्रेडमार्क के लिए किये गये आवेदन पर ट्रेडमार्क ऑफिस द्वारा लगाए गए ऑब्जेक्शन की कॉपी देखने के लिए क्लिक करें।

असल में ’लीड इंडिया’ हिंदी व अंग्रेजी भाषा में छपने वाला आरएनआई (Registrar of Newspapers for India ) में पंजीकृत दैनिक अखबार है। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ऐपीजे अब्दुल कलाम ने 2000 के शुरूआती दशक में ही लीड इंडिया 20-20 का नारा दिया था और युवाओं से आवाहन किया था कि वो राष्ट्र के विकास में सहभागी बने। ’लीड इंडिया ग्रुप’ के चेयरमैन और ’लीड इंडिया’ दैनिक अखबार के प्रकाशक एवं संपादक सुभाष सिंह ने जून 2007 में एक साक्षात्कार में ’दुर्गम खबर’ के संपादक द्वारा पूछे गए सवाल पर कि ’आपकी भविष्य की क्या योजनाए हैं?, के जवाब में कहा था कि उनकी बहुत इच्छा है कि वो एक दैनिक अखबार निकाले जिसका नाम ’लीड इंडिया’ हो। यह साक्षात्कार 2007 में जुलाई के प्रथम सप्ताह में रष्ट्रीय अखबार ’दुर्गम खबर’ में छपा था।

सुभाष सिंह का साक्षात्कार पढ़ने के लिए क्लिक करें। 

इसके उपरांत जनवरी 2008 में श्री सिंह ने ’लीड इंडिया’ नाम से अखबार निकालने के लिए आरएनआई में टाइटल लेने के लिए आवेदन किया। जो तमाम प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद फरवरी 2008 में सुभाष सिंह को ’लीड इंडिया’  नाम से टाइटल उपलब्ध करा दिया गया।

सुभाष सिंह द्वारा ‘लीड इंडिया’ टाइटल के लिए RNI  में दिए गए आवेदन को देखने के लिए क्लिक करें। 

RNI द्वारा सुभाष सिंह को ‘लीड इंडिया’ टाइटल फरवरी 2008 में उपलब्ध करा दिया गया, उसकी कॉपी RNI की वेबसाइट पर देखने के लिए क्लिक करें।
यहां यह भी बताना अनिवार्य है कि आरएनआई टाइटल देने के लिए बेहद सख्त प्रक्रिया अपनाता है। आरएनआई टाइटल देने के पूर्व यह देखता है कि आवेदित नाम से पूरे देश में कोई अखबार अथवा ट्रेडमार्क पंजीकृत ना हो साथ ही वह टाइटल किसी सरकारी विभाग, एजेंसी या बहुत प्रसिद्ध नाम से बिल्कुल ना मिलता हो। जब इन सभी मानदण्डों को प्रार्थी पूरा करता है तब जाकर आरएनआई द्वारा उसके पक्ष में टाइटल पंजीकृत किया जाता है।

टाइटल उपलब्ध कराने के लिए RNI  द्वारा जिस गाईडलाइन का अनुसरण किया जाता है उसे पढ़्ने के लिए क्लिक करें। 

टाइटल देने के दो वर्ष के भीतर प्रकाशक को उस नाम से अखबार अथवा पत्रिका का प्रकाशन करना अनिवार्य होता है। लीड इंडिया ग्रुप को ’लीड इंडिया’ नाम से टाइटल फरवरी 2008 में ही मिल गया था, तब तक टाइम्स ऑफ इंडिया ने ट्रेडमार्क के लिए एप्लाई भी नहीं किया था। ’लीड इंडिया दैनिक का प्रथम अंक 16 अगस्त 2009 को हिंदी भाषा में प्रकाशित हुआ।

‘लीड इंडिया' हिंदी दैनिक का प्रथम अंक पढ़ने के लिए क्लिक करें।

‘लीड इंडिया' हिंदी दैनिक का RNI द्वारा जारी पंजियन प्रमाणपत्र देखने के लिए क्लिक करें।

बैनेट कोलमैन द्वारा ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ के खिलाफ रची गई साजिश का भांडाफोड़ इस बात से ही हो जाता है कि ’लीड इंडिया’ दैनिक अखबार अगस्त 2009 से लगातार निकलता रहा और बैनेट कोलमैन ने किसी प्रकार का विरोध नहीं जताया। लेकिन जैसे ही अक्टूबर 2010 में ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का गठन हुआ और इसके माध्यम से डीएवीपी में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी वैसे ही बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) को ’लीड इंडिया’  नाम पर एतराज जताते हुए कोर्ट जा पहुंचा। ’लीड इंडिया ग्रुप’ को बिना सूचित किए 30 मार्च 2011 में वह दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे लेने में सफल रहा।

’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का पंजियन प्रमाण पत्र देखने के लिये क्लिक करें।
दो साल से चल रहे ’लीड इंडिया’  दैनिक अखबार पर बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) को कोई एतराज नहीं था लेकिन ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ के माध्यम से जैसे ही लघु प्रकाशकों के हित की बात करनी शुरू की बैनेट कोलमैन (टाइम्स ऑफ इंडिया) से सहन नहीं हुआ और ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ को कुचलने के लिए सारे हथकंडे अपनाने में लग गया। कुछ ही महीनों में ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने लघु प्रकाशकों के लिए इतना काम कर दिया था कि वो अपने आप में प्रशंसनीय है।

निशुल्क कार्य सहायता करने वाले ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने पहली बार समाज का ध्यान इस ओर खींचा कि कैसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ और अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने वाले लघु एवं मध्यम अखबार के प्रकाशक उत्पीड़न, अन्याय और भ्रष्टाचार का शिकार होते हैं। विडम्बना यह भी है कि आज तक इन प्रकाशकों के लिए किसी की संवेदना नहीं जागी क्योंकि इस विषय को कभी समाज के सामने रखा ही नहीं गया। जब ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने यह काम किया तो उसके खिलाफ कई ताकतें खड़ी हो गई हैं।

लेकिन यदि ’लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ की आवाज इस तरह बंद की जाएगी तो लोकतंत्र की हत्या का इससे बड़ा उदाहरण और कोई नहीं होगा। गली देहात और दूर दराज के इलाकों में लोगों की आवाज उठाने वाले लघु समाचारपत्रों के साथ भी नाइंसाफी होगी। ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ में 1100 से भी ज्यादा अखबार सदस्य के रूप में जुड़े है। जिनके हित की रक्षा सदा लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ करती है। यह जरूरी है कि लघु प्रकाशकों के हितों की रक्षा की जाए और ऐसे षड़यंत्रो को सफल होने से रोका जाए। क्योंकि यह स्वस्थ समाचार व लोकतंत्र के लिए बेहद आवश्यक है। यदि छोटे अखबारों की आवाज बंद हो गई तो देश के कुछ अखबार अपनी मोनोपॉली को देश पर थोपने के कार्य में संलिप्त रहेंगे।

लेखक श्री राजकुमार अग्रवाल हमारा मैट्रो दैनिक समाचार पत्र के संपादक हैं। श्री राजकुमार अग्रवाल सेhamarametro@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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