Saturday, May 28, 2011

Why PCI Charges annual fee on Newspapers?


The 'Explanation' under the said Rule 10 lays down that the circulation ranges of registered newspapers and periodicals shall be the latest circulation figures as available with the office of the Registrar of newspapers for India.

Basis of levied fee
A) Registered newspapers and periodicals with a circulation range above 1,50,000-
(i)    Rs. 7,500 per annum from each daily;
(ii)   Rs. 4,500 per annum from each bi-weekly/weekly;
(iii)  Rs. 3,500 per annum from each fortnightly/monthly;
(iv)  Rs. 2,250 per annum from all other categories;
(B) Registered newspapers and periodicals with a circulation range of above 1,00,000 and upto 1,50,000-
(i)   Rs. 5,250 per annum from each daily;
(ii)  Rs. 3,000 per annum from each bi-weekly/weekly;
(iii) Rs. 2,250 per annum from each fortnightly/monthly;
(iv) Rs. 1,500 per annum from all other categories;
(C) Registered newspapers and periodicals with a circulation range of above 50,000 and upto 1,00,000-
(i)   Rs. 3,750 per annum from each daily;
(ii)  Rs. 2,250 per annum from each bi-weekly/weekly;
(iii) Rs. 1,500 per annum from each fortnightly/monthly;
(iv) Rs. 1,125 per annum from all other categories;
(D) Registered newspapers and periodicals with a circulation range of above 15,000 and upto 50,000-
(i)   Rs. 1,500 per annum from each daily;
(ii)  Rs. 900 per annum from each bi-weekly/weekly;
(iii) Rs. 600 per annum from each fortnightly/monthly;
(iv) Rs. 450 per annum from all other categories;
(E) Registered newspapers and periodicals with a circulation range of above 5,000 and upto 15,000-
(i) Rs. 200 per annum from each daily;
(ii) Rs. 150 per annum from each bi-weekly/weekly;
(iii) Rs. 100 per annum from each fortnightly/monthly;
(iv) Rs. 100 per annum from all other categories;
(f) Rs. 7,500 per annum from each class I News agency;
(g) Rs. 5,250 per annum from Class II News agency;
(h) Rs. 3,750 per annum from all other news agencies.

What is Press Council of India?
The Press Council of India was first set up in the year 1966 by the Parliament on the recommendations of the First Press Commission with the object of preserving the freedom of the press and of maintaining and improving the standards of press in India. The present Council functions under the Press Council Act 1978. It is a statutory, quasi judicial body which acts as a watchdog of the press. It adjudicates the complaints against and by the press for violation of ethics and for violation of the freedom of the press respectively.
The Press Council is headed by a Chairman, who has by convention, been a retired judge of the Supreme Court of India. The Council consists of 28 other members of whom 20 represent the press and are nominated by the press organisations/news agencies recognized and notified by the Council as all India bodies of categories such as editors, working journalists and owners and managers of newspaper , 5 members are nominated from the two houses of Parliament and 3 represent cultural, literary and legal fields as nominees of the Sahitya Academy, University Grants Commission and the Bar Council of India. The members serve on the Council for a term of three years . The Council was last reconstituted on May 22, 2001.
The Council is funded by revenue collected by it as fee levied on the registered newspapers in the country on the basis of their circulation. No fee is levied on newspapers with circulation less than 5000 copies. The deficit is made good by way of grant by the Central Government, through Ministry of Information and Broadcasting

समाचारपत्रों से शुल्क क्यों लेती है भारतीय प्रेस परिषद?



इससे पूर्व यह जानना आवश्यक है कि कितने सर्कुलेशन पर भारतीय प्रेस परिषद द्वारा कितना शुल्क लगाया जाता है।

1,50,000 के ऊपर सर्कुलेशन पर शुल्क
  • यदि किसी भी दैनिक समाचारपत्र का सर्कुलेशन 1,50,000 के ऊपर है तो उसे 7500 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • प्रत्येक साप्ताहिक एवं सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र (पीरियोडिकल) और पत्रिकाओं को 4500 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसी तरह मासिक एवं पाक्षिक समाचारपत्र और पत्रिकाओं को 3500 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसके अलावा अन्य किसी श्रेणी में आने वाले पिरियोडिकल या पत्रिका को 2250 रूपये वार्षिक शुल्क देना देना होता है।
1,00,000 और 1,50,000 के ऊपर सर्कुलेशन पर शुल्क
  • प्रत्येक दैनिक समाचार पत्र को 1,00,000 और 1,50,000 के ऊपर सर्कुलेशन पर 5250 शुल्क देना होता है।
  • प्रत्येक साप्ताहिक एवं सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र और पत्रिकाओं को 3000 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसी तरह मासिक एवं पाक्षिक समाचारपत्र या पत्रिका को 2250 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसके अलावा अन्य किसी श्रेणी में आने वाले पिरियोडिकल या पत्रिका को 1500 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।

50,000 और 1,00,000 तक के सर्कुलेशन पर शुल्क
  • प्रत्येक दैनिक समाचार पत्र को 50,000 और 1,00,000 तक के सर्कुलेशन पर 3750 शुल्क देना होता है।
  • प्रत्येक साप्ताहिक एवं सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र और पत्रिकाओं को 2550 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसी तरह मासिक एवं पाक्षिक समाचारपत्र या पत्रिका को 1500 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसके अलावा अन्य किसी श्रेणी में आने वाले पिरियोडिकल या पत्रिका को 1125 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
15,000 और 50,000 तक के सर्कुलेशन पर शुल्क
  • प्रत्येक दैनिक समाचार पत्र को 15,000 और 50,000 तक के सर्कुलेशन पर 1500 शुल्क देना होता है।
  • प्रत्येक साप्ताहिक एवं सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र और पत्रिकाओं को 900 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसी तरह मासिक एवं पाक्षिक समाचारपत्र या पत्रिका को 600 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसके अलावा अन्य किसी श्रेणी में आने वाले पिरियोडिकल या पत्रिका को 450 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
5000 और 15,000 तक के सर्कुलेशन पर शुल्क
  • प्रत्येक दैनिक समाचार पत्र को 5000 और 15,000 तक के सर्कुलेशन पर 200 शुल्क देना होता है।
  • प्रत्येक साप्ताहिक एवं सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र और पत्रिकाओं को 150 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसी तरह मासिक एवं पाक्षिक समाचारपत्र या पत्रिका को 100 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
  • इसके अलावा अन्य किसी श्रेणी में आने वाले पिरियोडिकल या पत्रिका को 100 रूपये वार्षिक शुल्क देना होता है।
समाचार एजेंसी से प्रतिवर्ष लिया जाने वाला शुल्क
  • दैनिक समाचारपत्रों के लिए सेवाएं देने वाली एजेंसी से 7500 प्रतिवर्ष शुल्क लिया जाता है।
  • द्वितीय श्रेणी समाचार एजेंसी से प्रतिवर्ष 5250 शुल्क लिया जाता है।
  • अन्य सभी समाचार एजेंसियों से प्रतिवर्ष 3750.
क्या है भारतीय प्रेस परिषद?
भारतीय प्रेस परिषद का गठन 1966 में ‘प्रथम प्रेस कमीशन’ की सिफारिशों के आधार पर भारतीय संसद द्वारा किया गया था। इसका गठन इसलिए किया गया था ताकि भारत में चलने वाले समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की स्वतंत्रता को बनाए रखा जा सके साथ ही उनकी दशा और दिशा में सुधार के लिए कार्य किया जा सके। भारतीय प्रेस परिषद अधिनियम 1978 के अंतर्गत एक वैधानिक एवं अर्ध न्यायिक निकाय है जो प्रेस के एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है।

इसके अलावा भारतीय प्रेस परिषद में किसी समाचार पत्र और पत्रिका द्वारा पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करने के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई जा सकती है। यह शिकायत किसी भी व्यक्ति, सामाजिक समूह या गैर सरकारी संगठन द्वारा दर्ज कराई जा सकती है।

प्रेस परिषद में सदस्यो की संख्या 28 होती है। 28 सदस्यों के अलावा एक अध्यक्ष होता है। पूर्व स्थापित परंपरा के अनुसार भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटार्यड जज ही हो सकते हैं। 28 में से 20 सदस्य प्रेस के प्रतिनिधि होते हैं। इन सदस्यों का मनोनयन समाचार पत्रों या प्रेस से जुड़ी एसोसिएशनों, समाचार एजेंसियों, अखबार के मालिकों और प्रबंधकों, संपादकों की श्रेणी से किया जाता है। इसके अलाव 5 सदस्य संसद के दोनों सदनों से एवं 3 सदस्य साहित्य और कानूनी क्षेत्र से शामिल किए जाते हैं। एक परिषद का कार्यकाल 3 वर्ष के लिए निर्धारित होता है।

भारतीय प्रेस परिषद भारत में सभी पंजीकृत समाचारपत्र और पत्रिकाओं से वार्षिक शुल्क लेती है। भारतीय प्रेस परिषद द्वारा यह शुल्क उन्ही समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं से लिया जाता है जिनका सर्कुलेशन 5 हजार से ज्यादा हो।

Monday, May 2, 2011

प्रकाशकों के साथ धोखाः PAC बैठक से पूर्व कुछ अखबार पैनलबद्ध


अगस्त 2010 में पैनलबद्ध होने के लिए आवेदित अखबारों के चयन पर विचार करने के लिए बनी पीएसी की बैठक से पूर्व ही कुछ अखबारों को पैनलबद्ध कर लिया गया है। डीएवीपी में अगस्त 2010 में आवेदित अखबारों को पैनलबद्ध करने के लिए पीएसी की इस बैठक को नवंबर 2010 में होना चाहिए था, लेकिन बिना कारण बताए इस बैठक को मई तक घसीटा गया। जबकि अंदरखाने अगस्त 2010 में आवेदित कुछ अखबारों को पीएसी बैठक से पहले ही पैनलबद्ध कर लिया गया।

empaneled newspaperप्रकाशकों के साथ इससे बड़ा धोखा और क्या हो सकता है कि पहले तो उनसे फरवरी 2011 में पुनः आवेदन का मौका छीना गया और दूसरे वो भ्रम की स्थिति में अभी भी इंतजार में हैं कि जब पीएसी की बैठक होगी तो पूरी पारदर्शिता से अखबारों के पैनलबद्ध होने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

यद्यपि महानिदेशक डीएवीपी को विज्ञापन नीति 2007 के अनुसार अधिकार है कि वो पीएसी की बैठक से पूर्व अपने विवेकाधिकार से अखबारों को पैनलबद्ध कर सकता है। परंतु वह उन्ही अखबारों को पैनलबद्ध कर सकता है जिन अखबारों ने पैनलबद्ध होने के लिए डीएवीपी द्वारा निर्धारित सभी मानदण्डों और प्रक्रियाओं को पूरा किया हो। परंतु अगस्त 2010 में आवेदित पीएसी की बैठक से पूर्व जिन अखबारों को पैनलबद्ध किया गया है उनमें कुछ ऐसे अखबार भी शामिल हैं जिन्होंने इन मानदण्डों को पूरा नहीं किया है।

इन अखबारों को पैनलबद्ध करने के लिए महानिदेशक डीएवीपी ने अपने विवेकाधिकार का बेजा इस्तेमाल किया व लघु एवम क्षेत्रिय अखबारों के साथ दोहरा रवैया अपनाया। बड़ा सवाल यह है कि केवल इन्ही अखबारों को पैनलबद्ध करने में इतनी जल्दी क्यों दिखाई गई, यदि इसके पीछे यह कारण था कि पीएसी की बैठक में देरी हो रही थी तब क्यों नहीं सभी अखबारों पर विचार किया गया।
davp advertisement policy clause 9
डीएवीपी की मनमानी का आलम यह है कि कोई प्रकाशक उनसे सवाल नहीं कर सकता। हिन्दुस्तान के संविधान के मुताबिक एक बार नाइंसाफी होने पर न्याय पाने के लिए न्याय ना मिलने तक अपील करने का अधिकार है, परंतु डीएवीपी में हुए अन्याय को प्रकाशक अंतिम फैसला मानने को बाध्य है।

अगस्त 2010 में देश के दूर दराज इलाकों से आकर पैनलबद्ध होने के लिए प्रकाशक ईमानदारी से कतार लगाए खड़े रह गए और कतार तोड़ कर कुछ अखबारों को पैनलबद्ध कर लिया गया।

डीएवीपी बार बार यह दावा करता है कि वह पारदर्शिता के लिए प्रतिबद्ध है, यदि किसी प्रकाशक को डीएवीपी से कोई समस्या है तो वो सीधे डीजी और एडीजी से बात कर सकता है। जबकि असलियत यह है कि एक बार किसी अखबार के रिजेक्ट होने पर प्रकाशक अपने पक्ष में लाख तर्क रखे, डीएवीपी का एक ही जवाब होता है अब कुछ नहीं हो सकता अगली बार आवेदन करें। अंत तक डीएवीपी इस ’गलत रिजेक्शन’ के लिए खुद को जिम्मेदार मानने को तैयार नहीं होता, और ना ही उन पर पुर्नविचार करता है। कई प्रकाशकों ने ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ पास डीएवीपी द्वारा की गई मनमानियों के खिलाफ खबरें भेंजी हैं।

ऐसे ही एक प्रकाशक ने बताया कि उनके अखबार को यह कहते हुए पैनलबद्ध नहीं किया गया कि उन्होने अपने अखबार पर आरएनआई संख्या गलत लिखी है। इस संबंध में प्रकाशक ने महानिदेशक डीएवीपी से बात की लेकिन उसका कोई हल नही निकला। जब प्रकाशक ने सूचना के अधिकार अधिनियम के माध्यम से पूछा कि डीएवीपी किस आरएनआई संख्या को सही मानता है तब उत्तर मिला कि जो आरएनआई द्वारा जारी प्रमाणपत्र पर अंकित हो, तब प्रकाशक पुनः आरटीआई के जवाब और आरएनआई प्रमाणपत्र के साथ महानिदेशक डीएवीपी से मिला। प्रकाशक ने अखबार पर वही आरएनआई संख्या मुद्रित की थी जो आरएनआई प्रमाणपत्र पर अंकित थी। महानिदेशक डीएवीपी ने काफी हिलहुज्जत के बावजूद भी इस समस्या का एक ही समाधान बताया कि ‘अगली बार आवेदन करें’।

हमारे देश में सरकारी विभाग किसी काम को सुचारू करने के लिए काम नहीं करते बल्कि ऐसे गड्ढे बन जाते हैं जहां सब कुछ अटक जाए। डीएवीपी भी इसका अपवाद नहीं है।

दरअसल प्रकाशकों की समस्या से कोई जुड़ना नहीं चाहता। सरकार को भी केवल अपनी नीति के प्रचार प्रसार से मतलब है जिसके लिए वो अखबारों का प्रयोग तो करती है परंतु उसके उत्थान के लिए कुछ नहीं करना चाहती।

अखबारों के पैनलबद्ध ना होने की पीड़ा प्रकाशक की है, प्रकाशक को हर हाल में अखबार चलाना है। उसके लिए उसे डीएवीपी की ओर देखना पड़ता है। उसकी आशा टूटने से ना तो डीएवीपी को फर्क पड़ता है और ना सरकार को कोई दर्द होता है। ये प्रकाशक की अपनी लड़ाई है कि वो जनता की आवाज बने रहने के लिए कब तक संघर्ष कर सकता है।

लेखक श्री सुभाष सिंह लीड इंडिया दैनिक, इनसाइड स्टोरी पाक्षिक और सेंसेक्स टाइम बिजनेस पाक्षिक के प्रकाशक हैं एवं लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। श्री सुभाष सिंह से subhash_singh27@yahoo.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।

नोट: हमारा विरोध किसी भी प्रकाशक अथवा अखबार के साथ नहीं है। हमारा विरोध डीएवीपी की गलत नीतियों और सरकारी उदासीनता के साथ है। पीएसी की बैठक से पूर्व पैनलबद्ध किए गए समाचारपत्रों की सूची देना खबर के तथ्यों के लिए अनिवार्य है। लीपा सभी प्रकाशकों को एक समान देखती है, एवं उनके हितों के लिए भी उतनी ही तत्पर है।