Friday, December 17, 2010

सड़ांध भरे घोटालों का वर्ष

लालकृष्ण आडवाणी
अंग्रेजी पत्रिका आऊटलुक (13 दिसम्बर, 2010) के नवीनतम अंक की आवरण कथा कांग्रेस क्राइसिस शीर्षक से प्रकाशित हुई है। शीर्षक के नीचे दो चित्र-एक सोनियाजी और दूसरा राहुल गांधी का है। मुखपृष्ठ के ऊपरी कोने पर बहुचर्चित लॉबिस्ट नीरा राडिया का फोटोग्राफ प्रकाशित किया गया है।

मुख्य शीर्षक के साथ एक उप शीर्षक छपा है :
संसद में गतिरोध। एक चुनावी हार। कार्यकर्ताओं में विद्रोह। भ्रष्टाचार की दुर्गंध। क्या कांग्रेस 2014 के चुनावों से पूर्व इस गङ्ढे से बाहर आ पाएगी?
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सन् 2009 कांग्रेस के लिए विजय का वर्ष था। 14वीं लोकसभाई चुनावों में उनको मिली जीत आश्चर्यजनक जीत थी। लेकिन इस लगातार दूसरी जीत से वे नौवें आसमान पर सवार थे।

सन् 2010 अब समाप्त होने को है। यदि पिछले वर्ष की समाप्ति पर सत्तारूढ़ दल सर्वाधिक ऊंचाइयों पर था, लेकिन आज वास्तव में वह कचरे के ढेर में है। 2010 हमेशा सड़ांधभरे घोटालों के वर्ष के रूप में जाना जाएगा!
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पिछले सप्ताह संसद के सेंट्रल हॉल में अनेक सांसदों से मेरा मिलना हुआ जो सरकार पर आए गंभीर संकट पर चर्चा कर रहे थे, इनमें से एक चिंतित स्वर ने मुझसे पूछा: क्या दूसरा चुनाव अवश्यंभावी है? मेरा उत्तर था ”निस्संदेह कांग्रेस बुरी स्थिति में है। कांग्रेसजन अत्यधिक खिन्न और उदास हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सरकार चुनाव कराएगी। लेकिन जब कुछ मंत्रियों से मेरी बातचीत हुई तो यह सुझाव सुनने को मिला कि संसद के वर्तमान गतिरोध को समाप्त करने के लिए सरकार लोकसभा को भंग करने का भी सोच सकती है, तब मुझे अहसास हुआ कि आखिर क्यों सांसद चुनावों की संभावनाओं के बारे में घबराए हुए हैं।

कोई भी सरकार तब तक समय पूर्व चुनाव नहीं कराती जब तक वह जीतने के प्रति आश्वस्त न हो। यू.पी.ए. की प्रतिष्ठा आज से पहले कभी इतनी नीचे नहीं गिरी थी। भंग कराने की चर्चा सांसदों को डराने के लिए लगती है। वाम, दक्षिण और मध्य सभी सांसद एक संयुक्त संसदीय समिति की मांग के समर्थन में ठोस रूप से एकजुट होकर खड़े हैं।
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‘स्टेट्समैन‘ के सम्पादक रवीन्द्र कुमार ने पिछले महीने (10 नवम्बर) को ताजा घोटालों पर चोट करने वाला लेख ”रॉटिंग फ्रॉम द हेड” (शीर्ष से सड़ांध) शीर्षक से लिखा है।

इस लेख के निम्न दो पैराग्राफ दर्शाते हैं कि जो कुछ चल रहा है उस पर वे कितने रोष में हैं :

”जिन घोटालों से कांग्रेसनीत सरकार घिरी है उन्हें अत्यधिक साधारण रुप से देखा जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि परियोजनाएं और योजनाएं लूट के प्राथमिक उद्देश्य से सृजित और क्रियान्वित की जा रही है। सरकारी प्रयासों से सामान्य नागरिकों को यदि कुछ लाभ मिलता है तो वह संयोगवश है। और यदि यही केस है तो सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की जोड़ी को 6 वर्ष पूर्व संभाली गई जिम्मेदारी में गड़बड़ी के चलते एक नया कदम उठाना होगा।

तथ्यों पर विचार करें। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में संचार मंत्री ए. राजा के शामिल होने को दर्शाने वाले पर्याप्त सबूत एक वर्ष पूर्व सामने आए। टेप किए गए वार्तालाप से न केवल आपराधिक साक्ष्य सामने आए अपतिु राजनीतिक और कॉरपोरेट के खिलाड़ियों द्वारा सरकार में किए गए भयंकर घोटालों के रूप में सामने आया है।”

चौदहवीं लोकसभा के चुनाव साधारणतया सितम्बर 2004 में होने थे। लेकिन अक्तूबर 2003 में तीन मुख्य प्रदेशों - मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जो कांग्रेस के पास थे - में हमारी प्रभावी जीत हुई। इन परिणामों ने एन.डी.ए. को संसदीय चुनावों को समय पूर्व कराने पर विचार करने हेतु प्रोत्साहित किया।

सबसे पहले भाजपा, फिर एनडीए और फिर तेलुगू देसम जैसे हमारे सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श कर प्रधानमंत्री वाजपेयीजी ने 2004 की शुरूआत में लोकसभा को भंग करने और नए चुनाव कराने का निर्णय किया।

देश का राजनीतिक मानस एनडीए के पक्ष में दिखता था। वाजपेयीजी की लोकप्रियता भी अपने शीर्ष पर थी। अर्थव्यवस्था में भी उभार था। जब एनडीए के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने जीडीपी को आठ प्रतिशत वृध्दि के लक्ष्य के बारे में बोला तो सोनियाजी ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि यह ‘मुगेरी लाल के हसीन सपने‘ जैसा है! लेकिन एनडीए के वायदे के अनुसार 2003 के दूसरे पखवाड़े में भारत की जीडीपी वृध्दि 8.4 प्रतिशत दर्ज हुई। विश्वस्तरीय राजमार्गों के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क निर्माण करने जैसी अनेक प्रमुख प्रयासों के परिणाम दिखने लगे और यह एनडीए की उपलब्धियां बनीं। सूचना तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति के चलते पूरी दुनिया में भारत को ‘सॉफ्टवेयर सुपर पावर‘ के रूप में पहचाना जाने लगा।

मैं मानता हूं कि सन् 2004 के चुनावों में हम मुख्यतया अतिविश्वास और उससे उपजी आत्ममुग्धता के कारण हारे। साथ  ही सरकार में रहते हुए उन 6 वर्षों के दौरान हमारे संगठनात्मक नेटवर्क में भी कमियां आईं। राज्यवार विचार करें तो इस दृष्टि से सब से बुरी तरह प्रभावित देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश रहा, ऐसा प्रदेश जहां हम 2004 और 2009 में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए।

जब कुछ समय पूर्व श्री नितिन गडकरी ने पार्टी का नेतृत्व संभाला तो उनके तबके वक्तव्यों में से एक में उन्होंने उन सहयोगियों के बारे में बोला जिन्होंने पार्टी को मजबूत बनाने में योगदान दिया था, परन्तु उनके दायित्व संभालने से पूर्व वे हम से अलग हो गए थे। उन्होंने मुझसे दो नामों- जसवंत सिंहजी और उमाश्री भारती - के बारे में विचार-विमर्श किया। मैंने जसवंत सिंह जी से बात की और वे पार्टी में वापस आए और पहले की तरह सक्रिय हैं।

नितिन जी ने स्वयं उमाजी से बात की। उमाजी ने मुझसे, और मेरी सलाह पर वे इस पर राजी हो गईं कि भविष्य में वे उत्तर प्रदेश जिसके बारे में मैंने उल्लेख किया कि कैसे वह बहुत कमजोर है, में पार्टी इकाई को मजबूत करने पर ध्यान केन्द्रित करेंगी। उन्होंने बताया कि वे उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ना चाहेंगी। लेकिन इस कार्य में जुटने से पहले उन्होंने पार्टी अध्यक्ष से कुछ समय मांगा है।
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भारतीय संसद के इतिहास में इस वर्ष का शीतकालीन सत्र पूरी तरह से न होने के बराबर है।

सत्र के पहले दिन प्रश्नकाल सामान्य रूप से चला, लेकिन जब विपक्ष ने तीन घोटालों- स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला और मुंबई गृह सोसायटी घोटाले के मुद्दे को उठाना चाहा तो समूची कांग्रेस पार्टी ने विपक्ष की नेता सहित सभी विपक्षी सांसदों को शोर मचा कर चुप करा दिया।

अत: विपक्ष की इन घोटालों की जांच की मांग के विरोध में कांग्रेस पार्टी के विरोध के फलस्वरूप ही कार्यवाही बाधित हुई है। यह दिन-प्रतिदिन चलता रहा। समय-समय पर सदस्य कभी-कभी मंत्रियों से रिपोर्ट सुनते रहे कि संयुक्त संसदीय समिति की घोषणा होने वाली है। लेकिन सत्र का अंतिम दिन आ गया है मगर ऐसा नहीं हुआ।

सत्तारूढ़ पार्टी रोज घोषणा करती है जे.पी.सी. नहीं!
विपक्ष कहता है जे.पी.सी. नहीं तो सत्र नहीं!

इस बार हम सबके लिए वास्तव में आश्चर्यजनक यह है कि जनता और मीडिया का दवाब है : विपक्ष को पीछे नहीं हटना चाहिए, सरकार घिरी हुई है; उसे ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहिए!

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