Friday, January 25, 2013

सम्मान की जीत की पूरी कहानी प्रोजेक्ट 'शक्ति'

प्रोजेक्ट शक्ति ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का एक विज़नरी प्रयास है। एक बेहद यूनिक कांसेप्ट प्रोजेक्ट “शक्ति” अपने हर सदस्य को आर्थिक रूप से मजबूत होने की शक्ति तो देता ही है उनके सम्मान की सुरक्षा की भी गारंटी देता है। प्रोजेक्ट शक्ति”: ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ की विज्ञापन नीति है जो इससे जुड़े प्रत्येक सदस्य को प्राइवेट क्षेत्र से विज्ञापन दिलाने में सहायक होगी।

सम्मान के लिये दृढ़ संकल्पित
“लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन” ना सिर्फ सदस्यों की आर्थिक सुरक्षा के लिये कटिबद्ध है बल्कि उनके सम्मान के लिये भी दृढ़ संकल्पित है। आपका अनुभव होगा जब आप कभी संकट में पड़ॆ होंगे तब खुद को अकेले पाया होगा। कई बार अखबार प्रकाशन के दौरान जनहित के मुद्दे उठाना प्रकाशक के लिये मुसीबत बन जाता है और जब वो खुद अपने विषय में खबर छापते हैं तो उसका इतना प्रभाव नहीं होता क्योंकि एक तो वो खबर खुद अपने बारे में होती है दूसरा उस अखबार का सर्कुलेशन कम होता है।
ऐसे में अन्याय पीड़ित प्रकाशक को दोहरा दंश झेलना होता है। झूठे आरोप व अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाने पर बेवजह की मुसीबत और दूसरा सम्मान पर आघात। प्रोजेक्ट शक्तिअपने हर सदस्य के सम्मान के लिये लड़ेगा। यदि किसी सदस्य को झूठे आरोप के तहत कानूनी चक्र में फंसाया जायेगा तो सच्चाई के आधार पर प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़े सभी सदस्य खबर छाप कर संबंधित विभाग, अधिकारी व संबन्धित मंत्रालय को भेजेंगे। इस सामूहिक खबर प्रकाशन से नि:सन्देह अकेले लड़ने वाले उस प्रकाशक की शक्ति सौ गुना बढ़ जायेगी। उसके सम्मान की जीत हो पायेगी। यकीन मानिये सामूहिक लेख और समाचार प्रकाशन का असर किसी एक बड़े अखबार में छपने वाली खबर से कई गुना अधिक होगा। लीपा अपने सदस्यों के सम्मान पर आघात नहीं होने देगी।
देश में आज आरएनआई द्वारा रजिस्टर्ड अखबारों की संख्या बयासी हजार दो सौ सैंतीस (82237)  है। जिनमें क्षेत्रिय समाचारपत्रों की संख्या अधिक है। देश के बहुत बड़े भाग में अलग-अलग भाषाओँ में समाचार पहुंचाने का काम क्षेत्रिय समाचारपत्र ही करते हैं। फिर भी विज्ञापनदाता ज्यादा सर्कुलेशन वाले कुछ चुनिंदा अखबारों में ही विज्ञापन देना पसन्द करते हैं। जबकि सच यह है कि बड़े अखबार कहलाने वाले कुछ अखबारों का टोटल सर्कुलेशन मात्र 8 करोड़ है। उनकी तुलना में यदि हम बाकि बचे क्षेत्रिय अखबारों को देंखे तो उनका सर्कुलेशन 22 करोड़ से भी ज्यादा है। इतने बड़े पाठक वर्ग को कवर करने के बावजूद भी क्षेत्रिय अखबारों को विज्ञापन नहीं मिलता। क्योंकि क्षेत्रिय समाचार पत्र अलग-अलग बिखरे हुये हैं।

आर्थिक सुरक्षा

सर्कुलेशन की समस्या आज क्षेत्रिय समाचारपत्रों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। कम सर्कुलेशन के चलते ही क्षेत्रिय समाचारपत्रों को विज्ञापन नहीं मिल पाते। विज्ञापनदाता सबसे पहला प्रश्न करता है कि आपके अखबार का सर्कुलेशन कितना है, आपके अखबार में एड देने से मुझे क्या फायदा होगा? भले ही आपका अखबार अपने क्षेत्र का सबसे प्रभावी अखबार क्यों ना हो इस प्रश्न से उस व्यक्ति का आत्मविश्वास थोड़ा जरूर हिल जाता है जो विज्ञापन लेने गया है। क्योंकि विज्ञापन लेने वाला व्यक्ति ये तो कह सकता है कि मेरा अखबार बड़ा प्रभावी है लेकिन वो विज्ञापनदाता को उसका सौ गुना लाभ नहीं दिखा सकता।
इस समस्या के समाधान के लिए ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ अपनी विज्ञापन नीति पर काफी समय से काम कर रही थी। अब आप प्रोजेक्ट शक्ति के माध्यम से अपने विज्ञापनदाता को सौ गुना लाभ दिला सकते हैं। ‘लीपा’ ने विज्ञापन नीति प्रोजेक्ट शक्ति को 14 सितम्बर को दिल्ली में हुई वार्षिक बैठक में पॉवर पॉइंट प्रेज़ेंटेशन के माध्यम से सभी उपस्थित सदस्यों के समक्ष रखा और प्रोजेक्ट शक्ति को आप सभी का बेहद उत्साही समर्थन मिला था। तालियों की गड़गड़ाहट ने बता दिया कि प्रोजेक्ट शक्तिमें कितनी शक्ति है।
प्रोजेक्ट शक्तिकी बुनियाद
‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ने प्रोजेक्ट शक्ति को कड़ी मार्केट रिसर्च के बाद डिज़ाइन किया है। आपको जानकर गर्व होगा कि आपकी एसोसिएशन: “लीपा” प्रोजेक्ट शक्ति जैसे कांसेप्ट को जन्म देने वाली देश की पहली और अकेली ऑर्गेनाइजेशन है। इस कार्य के लिये लीपा की रिसर्च टीम ने बड़ी कंपनीज़ के मार्केटिंग हैड और एमडीज़ से कई मींटिंग की और मार्केट सर्वे किये। ये सभी बड़ी कम्पनियां प्रोजेक्ट शक्ति कॉंसेप्ट से काफी प्रभावित हुई। उनका मनना है कि यदि लीपा अपने इस कॉंसेप्ट को आगे बढ़ा पायी तो निश्चित ही हमारी ये धारणा बदल जायेगी कि हमें अपने विज्ञापन का लाभ केवल बड़े अखबारों से ही मिल सकता है।
रिसर्च में सामने आया कि किसी भी विज्ञापनदाता कंपनी का विज्ञापन देने का एक ही उसूल होता है कि वह अपना विज्ञापन उस माध्यम से करे जिसकी पहुंच अधिक से अधिक हो, जिसका उसे लाभ अधिक मिले और उसकी कॉस्ट कम हो। इस सिद्धांत को कॉर्पोरेट भाषा में “हाई रीच इन लो कॉस्ट” कहते हैं। यही आज हर विज्ञापनदाता की सबसे बड़ी जरूरत है।
ठीक इसी तरह वो अपने सामान को बेचने के लिये एक एरिया निर्धारित करते हैं जहां उनके उत्पादन का इस्तेमाल करने वाले अधिक से अधिक लोग रहते हों। एरिया के आधार पर वो प्रचार माध्यम तय करते हैं। उदाहरण के लिये बाघ बकरी चाय गुजरात का एक फेमस ब्रांड है। तो इसके प्रचार के लिये एडवर्टाइजर गुजरात के अखबारों का चुनाव करेगा। वो ऐसे अखबार को विज्ञापन के लिये चुनेगा जो बाघ बकरी चाय के प्रचार को घर घर पहुंचा सके। प्रोजेक्ट शक्तिके माध्यम से हमें घर घर पहुंचने वाला अखबार बनना है।
प्रोजेक्ट शक्ति
प्रोजेक्ट शक्ति किसी भी विज्ञापनदाता को हाई रीच इन लो कोस्ट देने में सक्षम है। लीपा में वर्तमान में 2200 से अधिक सदस्य हैं। इनमें 500 सर्कुलेशन से लेकर 75000 और उससे भी ज्यादा सर्कुलेशन वाले अखबार/पत्रिका सदस्य हैं। इतना ही नहीं इनकी भाषा भी अलग अलग हैं और अवधि भी। प्रोजेक्ट शक्ति इन सभी अखबारों के अलग अलग सर्कुलेशन को एक जगह कम्बाइंड करेगा।
अतः प्रोजेक्ट शक्ति के तहत किसी भी एडवरटाइज़र को विज्ञापन देना किसी सौ गुना मुनाफे का सौदा होगा। प्रोजेक्ट शक्तिकी विशेषता यह है कि इस के तहत विज्ञापनदाता को विज्ञापन छपवाने के लिये केवल एक पब्लिशर को भुगतान करना होगा और प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़े अन्य सदस्य उस विज्ञापन को नि:शुल्क छापेंगे। इस तरह उसका विज्ञापन देश भर में विभिन्न भाषाओं में छपेगा जो महीने भर तक अलग-अलग पीरियोडिसिटी के माध्यम से विज्ञापनदाता तक पहुंचता रहेगा।
इस तरह प्रोजेक्ट “शक्ति” से जुड़े कम सर्कुलेशन या किसी भी पीरियोडिसिटी (वीकली, फोर्टनाइटली, मंथली) वाले पब्लिशर मेम्बर भी विज्ञापन लेने जाएंगे तो उनका आत्मविश्वास बढ़ा रहेगा। वो कह सकते हैं कि मेरे अखबार में विज्ञापन देने पर मैं यह विज्ञापन सौ अन्य अखबारों में नि:शुल्क छपवा सकता हूं जिसके लिये विज्ञापनदाता को कोई भुगतान नहीं करना होगा।
प्रोजेक्ट शक्तिके सदस्य पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि एक विज्ञापन के भुगतान के बदले सौ अन्य अखबारों में फ्री विज्ञापन छपवाने की अथॉरिटी केवल मेरे पास है क्योंकि मैंप्रोजेक्ट शक्ति का हिस्सा हूं। साथ ही यह बात भी विषेश बल देकर बतायी जा सकती है कि प्रोजेक्ट शक्तिके अंतर्गत अखबार में छपने वाला विज्ञापन देश भर में कई अखबारों में कई भाषाओं में नि:शुल्क छपेगा जिसकी अवधि भी अलग अलग होगी।
विज्ञापनदाता से ऐसा वादा करने के लिए प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े सभी सदस्य स्वतंत्र होंगे और किसी एक सदस्य द्वारा लिया गया विज्ञापन सभी सदस्यों को छापना अनिवार्य होगा। इस तरह सभी सदस्यों को विज्ञापन मिलना सुलभ हो जायेगा। निःसंदेह प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़ने के बाद की 5 सौ कॉपी छापने वाले प्रकाशक से लेकर 50 हजार कॉपी छापने वाले प्रकाशक तक सभी की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
कैसे पहुंचेगा विज्ञापन
“लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन” का कोई भी सदस्य प्रोजेक्ट शक्ति के अंतर्गत विज्ञापन ले कर सीधे लीपा को भेज सकता है, जिसके बाद वह विज्ञापन लीपा की वेबसाईट पर जारी कर दिया जाएगा जहाँ से सभी सदस्य वह विज्ञापन लेकर अपने अखबारों में प्रकाशित कर सकते हैं। साथ ही विज्ञापन लेने वाले प्रकाशक सदस्य और विज्ञापनदाता की डीटेल भी वेबसाइट पर जारी होगी। इस विज्ञापन नीति को अपनाने वाले सदस्य किसी भी साइज़ में विज्ञापन लेने के लिये स्वतंत्र होंगे। एड कलर या ब्लैक एंड व्हाइट भी हो सकता है। अलग-अलग सदस्य अपने अखबार में बची हुई जगह की उपलब्धता के अनुसार अलग-अलग साइज़ में विज्ञापन छाप सकते हैं।
प्रोजेक्ट शक्तिमें शामिल होने के नियम
प्रोजेक्ट शक्ति का हिस्सा बनने के लिये इच्छुक सभी सदस्य सर्वप्रथम लीपा की वेबसाइट पर जारी होने वाले काम्प्लीमेंट्री (बिना भुगतान) विज्ञापन प्रकाशित करके उसकी एक प्रति लीपा कार्यालय और दूसरी प्रति विज्ञापनदाता और तीसरी कॉपी विज्ञापन लेने वाले प्रकाशक के पास डाक द्वारा भेंजे। यह अनिवार्य है। प्रकाशक सदस्य प्रोजेक्ट शक्ति के विषय में  अपने एरिया के विज्ञापन दाताओं को भी समझा सकते हैं। प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़ॆ नियमित सदस्य खुद भी काम्प्लीमेंट्री (बिना भुगतान) या पेड विज्ञापन ले सकते हैं जिसे सभी सदस्य अनिवार्य रूप से छापेंगे।
प्रोजेक्ट शक्ति के तहत पेड विज्ञापन लेने के लिये मिनिमम 5000 रूपये का विज्ञापन होना जरूरी है। अधिकतम इसकी संख्या कितनी भी हो सकती है।
कॉम्पलीमेंट्री एड प्रकाशक अपनी सुविधा के अनुसार साइज़ और कलर या ब्लैक एंड व्हाइट छाप सकते हैं। परंतु यह केवल सीमित समय के लिये है।
असंभव को संभव बनाना
प्रोजेक्ट शक्तिअसंभव से लगने वाले कार्य को बड़ी आसानी से संभव बना सकता है। विज्ञापनदाता इस कॉंसेपेट को सुनकर सुखद आश्चर्य में हैं। उनका मानना है कि क्या ऐसा संभव है कि उनका एड फ्री में सौ अखबारों में छप सकता है जिसके लिये उन्हें भुगतान केवल एक विज्ञापन के लिये करना है। कॉम्पलीमेंट्री एड इसी बात को सिद्ध करने के लिये जारी किये जा रहे हैं। शुरूआत में ये एड लगातार जारी होते रहेंगे। क्योंकि कई त्रैमासिक पत्रिका भी जो लीपा के सदस्य हैं, प्रोजेक्ट शक्तिका हिस्सा बनना चाहती हैं। और एडवर्टाइज़र भी इस बात को पुख्ता करना चाह्ते हैं कि क्या वाकई उनका एड रेगुलर छपेगा। इसके लिए प्रोजेक्ट शक्तिजब लगातार विज्ञापन छापेंगे तो उन्हे यकीन हो पायेगा।
आप अपने क्षेत्र के विज्ञापनदाता को भी प्रोजेक्ट शक्तिसे प्रत्यक्ष रूप से परिचित कराने के लिये कॉम्पलीमेंट्री एड ले सकते है। प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़े सभी सदस्य जितनी जल्दी इस कांसेप्ट को एडवरटाइजर के मन में बैठा देंगे उतनी जल्दी उन्हे इसका लाभ मिलने लगेगा। आपको प्रोजेक्ट शक्तिको इस तरह समझा देना है कि अगर आपके इलाके का एडवरटाइज़र एड देना चाहे तो उसके दिमाग में पहला नाम प्रोजेक्ट शक्तिही आये।
प्रोजेक्ट शक्ति में जुड़ने के लाभ
आपको अनुभव होगा जब आप किसी विज्ञापनदाता के पास गये होंगे तो आप में कहीं ना कहीं एक याचक का भाव रहा होगा। क्योंकि विज्ञापनदाता का सबसे पहला सवाल होता है कि ‘आपके अखबार का सर्कुलेशन कम है’‘मैंने कभी आपका अखबार नहीं देखा’ या ‘मेरे उत्पादन का प्रयोग करने वाले लोगों तक आपका अखबार नहीं पहुंचता’ इसलिये आपको विज्ञापन देकर मुझे कोई फायदा नहीं। प्रोजेक्ट शक्ति का हिस्सा बन कर आप इन सभी सवालों का जवाब बड़े गर्व के साथ दे सकते हैं और वो भी अपने अखबार के सही सर्कुलेशन के साथ।
प्रोजेक्ट शक्ति आपको बड़े विज्ञापनदाता से बात करने के लिये ‘टॉकिंग पॉइंट’ देता है। पहले आपके पास उससे बात करने का कोई विषय नहीं था। परंतु अब आप उसे उसका सौ गुना फायदा दिखा सकते हैं। आप खुद अपने एरिया के विज्ञापनदाता को प्रोजेक्ट शक्ति से परिचित करवाये उसे लाभ पहुंचाये। अगली बार आप उससे अच्छा विज्ञापन लेने की स्थिति में बिना किसी प्रयास के आ जायेंगे। प्रोजेक्ट शक्ति आपके आत्मविश्वास और सम्मान को बढ़ायेगा।
एसोसिएशन को आपका योगदान
विज्ञापन लेने वाले प्रत्येक सदस्य को उस विज्ञापन की आय का मात्र 15 प्रतिशत भाग लीपा के कोष में सहयोग राशि के रूम में जमा कराना होगा। इस धन का उपयोग लीपा अपने सदस्यों के कल्याण के लिये करेगी। आपके इस योगदान से एसोसिएशन मजबूत होगी और प्रकाशकों के हित में और अधिक काम कर सकेगी।
लीपा की विज्ञापन डायरेक्ट्री
जो सदस्य लगातार काम्प्लीमेंट्री विज्ञापन नियमित प्रकाशित करेंगे उनके नाम लीपा की विज्ञापन डायरेक्ट्री में उनकी पूरी डीटेल के साथ छापे जायेंगे। यह डायरेक्ट्री बड़ी विज्ञापन कंपनीज़ को भी भेजी जायेगी ताकि वो प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े सदस्यो से परिचित हो सकें और विज्ञापन जारी करने के लिये उन्हें खुद भी बुला सके।
प्रोजेक्ट शक्तिकी चुनौतियां
प्रोजेक्ट शक्ति को एडवरटाइज़र से भलीभांति परिचित करवाना प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े सभी सदस्यों की भी जिम्मेदारी होगी। इसके अलावा सही समय पर एड प्रकाशित करके पहुंचाना भी सदस्यों की जिम्मेदारी है। यदि इस प्रोजेक्ट को एक बार आपने ठीक से समझ लिया तो यह एक वरदान की तरह काम करेगा जो निश्चित ही प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े सभी सदस्यों की आर्थिक उन्नति को सुनिश्चित करेगा।
प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े प्रश्न
कई लोगों के मन में प्रश्न है कि प्रोजेक्ट शक्ति अपनी पारदर्शिता कैसे बनाये रख सकेगा। हो सकता है कि कोई सदस्य विज्ञापन के विषय में ‘लीपा’ से गलत जानकारी शेयर करें, मसलन विज्ञापन 50,000 का ले और बतायें 10,000 का ऐसे में लीपा को नुकसान और किसी एक पब्लिशर को फायदा होगा।
ऐसे में ‘लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन’ का क्लीयर स्टैंड है कि लीपा को अपने सभी सदस्यों पर पूरा भरोसा है क्योंकि लीपा का प्रथम और अंतिम लक्ष्य अपने सदस्यों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना है।
इसके अलावा कुछ सदस्यों ने जिन्होंने एजीएम नहीं अटैंड किया था उनका पूछना है कि अगर उसने एड ले लिये और वादा कर दिया कि यह विज्ञापन सौ अन्य अखबारों में फ्री छपेगा और ऐसा नहीं हुआ तब उसकी क्रेडिबिलिटी का क्या होगा। ऐसे में हमारा उत्तर है कि सभी प्रकाशक जिम्मेदार हैं और प्रोजेक्ट शक्तिके अंतर्गत एक ना एक दिन सभी को विज्ञापन लेना होगा हमें विश्वास है ऐसे में सभी एक दूसरे का विज्ञापन पूरी पार्दर्शिता और ईमानदारी से छापेंगे।
प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़ॆ अन्य सवाल
@ प्रश्न: प्रोजेक्ट शक्ति के अंतर्गत मैं कितने तक का विज्ञापन ले सकता हूं?
उत्तर  प्रोजेक्ट शक्तिके अंतर्गत आप कितने भी रूपये का विज्ञापन लेने के लिये स्वतंत्र हैं लेकिन   मिनिमम 5000 का विज्ञापन लेना अनिवार्य है।
@ प्रश्न: विज्ञापन लेने के बाद R. O. किसके नाम में बनेगा?
उत्तर R.O. विज्ञापनदाता के नाम से बनेगा।
@ प्रश्न:  क्या प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़ा कोई भी प्रकाशक सदस्य कॉम्पलीमेंट्री एड ले सकता है?
उत्तर हाँ, प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े लीपा के सभी सदस्य कॉम्पलीमेंट्री एड ले सकते हैं क्योंकि कॉम्पलीमेंट्री एड लेने का उद्देश्य विज्ञापनदाता को भरोसा दिलाना है कि आप उनका विज्ञापन 100 से अधिक अखबारों में नि:शुल्क छपवा सकते हैं। कॉम्पलीमेंट्री एड किसी बड़ी कम्पनी का ही लं< तो अधिक लाभदायी होगा।

@ प्रश्न:   प्रोजेक्ट शक्ति के अंतर्गत कोई एक प्रकाशक कितने कांप्लीमेंट्री एड ले सकता है?
उत्तर इस विषय पर आप खुद समझदारी से काम लेते हुए कम से कम कॉम्पलीमेंट्री एड लें ताकि आपको और अन्य सदस्यों को कॉम्पलीमेंट्री एड प्रकाशित करने में असुविधा ना हो। यदिप्रोजेक्ट शक्तिके सभी सदस्य भी एक-एक कॉम्पलीमेंट्री एड लेते हैं तो कॉम्पलीमेंट्री एड की संख्या सौ होगी। परंतु जब सभी विज्ञापनदाताओं के पास प्रोजेक्ट शक्तिके माध्यम से इस तरह विज्ञापन पहुंचेगा तो नि:संदेह उनका विश्वास प्रोजेक्ट शक्तिमें बढ़ेगा और प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़ॆ सदस्यों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
@ प्रश्न:  विज्ञापन सभी प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़ॆ सभी सदस्यों तक कैसे पहुंचेगा?
उत्तर विज्ञापन लेने के बाद प्रधम चरण में आपको यह विज्ञापन “लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोएशन” को भेजना होगा। साथ ही अपनी और विज्ञापनदाता की डीटेल भी भेंजे। आपके द्वारा दिये गये एड और सभी जानकरी को लीपा की वेबसाइट www.lipa.co.in पर प्रकाशित किया जाएगा यहां से प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े सभी सदस्य एड लेकर अपने अखबार एवं पत्रिका में पब्लिश करेंगे। तथा सभी सदस्य प्रकाशित एड की एक प्रति ‘लीपा’ कार्यालय एक प्रति विज्ञापनदाता और एक प्रति विज्ञापन लेने वाले सदस्य को भेंजेंगे।
@ प्रश्न:  क्या मैं छोटे विज्ञापनदाता से भी विज्ञापन ले सकता हूं?
उत्तर हाँ, परंतु विज्ञापन मिनिमम 5000 रूपये का होना चाहिये।
@ प्रश्न:  लीपा और कितने कॉम्प्लीमेंट्री एड जारी करेगी?
उत्तर लीपा दिसम्बर तक बड़ी कम्पनीज़ के कुछ और कॉम्प्लीमेंट्री एड जारी करेगी।
@ प्रश्न:  क्या प्रोजेक्ट शक्तिके तहत दूसरे सदस्यों के द्वारा लिया एड छापना अनिवार्य है?
उत्तर हाँ, प्रोजेक्ट शक्ति के सभी सदस्य एक दूसरे के विज्ञापन को अनिवार्य रूप से छापेंगे।
@ प्रश्न:  प्रोजेक्ट शक्तिसे जुड़े सदस्य लीपा को किस तरह सहयोग करेंगे?
उत्तर विज्ञापन लेने वाले प्रत्येक सदस्य को उस विज्ञापन की आय का मात्र 15 प्रतिशत भाग लीपा के कोष में सहयोग राशि के रूम में जमा कराना होगा। इस धन का उपयोग लीपा अपने सदस्यों के कल्याण के लिये करेगी।

Monday, September 17, 2012

"लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन" की AGM संपन्न!


नई दिल्ली।। लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशनकी वार्षिक बैठक 14 सितंबर 2012 दिल्ली में सम्पन्न हुई। बैठक में 20 राज्यों से अधिक समाचारपत्र प्रकाशक सदस्यों ने भाग लिया। बैठक में अतिथि के रूप में माननीय जस्टिस मार्कंडे काटजू (अध्यक्ष पी सी आई), सुरेश च्वहानके, अध्यक्ष ऑल इंडिया टीवी चैनल एसोसिएशन, डॉ0 सुनील मग्गो, सोशल वर्कर, और पॉलिटिकल लीडर, और डॉ जूलियान, जर्मन सिविल सर्वेंट, इंडो-जर्मन कॉर्डीनेटर ने भाग लिया।
आरएनआई के रजिस्ट्रार एंड हैड ऑफ द डिपार्टमेंट के. गणेशन ने अपरिहार्य कारणों से उपस्थित होने में असमर्थता दिखाई परंतु उन्होंने ना सिर्फ वीडियो के माध्यम से लीपा के सदस्य प्रकाशकों को बधाई दी बल्कि लीपा के उल्लेखनीय कार्यों की भी प्रशंसा की। उन्होंने प्रकाशकों के हित में जल्द ही आरएनआई द्वारा किये जाने वाले कार्यों के विषय में भी बताया।
बैठक में देश भर से लगभग 300 प्रकाशकों ने भाग लिया। लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष सिंह ने बैठक के निर्धारित एजेंडा को प्रस्तुत करते हुए लीपा के पिछले दो वर्षों किये कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। इसके अलावा उन्होंने लीपा की भविष्य की योजनाओं को भी सदस्यों के सामने रखा।
लीपा की विज्ञापन योजना शक्तिको उपस्थित सभी सदस्यों ने भरपूर समर्थन दिया। श्री सुभाष सिंह ने सभी सदस्यों को शक्ति प्रोजेक्ट के विषय में समझाते हुए कहा कि किस तरह इस योजना शक्तिसे ना सिर्फ प्रकाशकों को लाभ मिलेगा बल्कि उनका आत्मविश्वास और शक्ति भी बढ़ेगी। इस योजना में लीपा के सभी सदस्यों को विज्ञापन मिलना सुनिश्चित हो सकेगा।
मार्केटिंग विषेशज्ञ और ऐयटेल के एरिया मैनेजर अनिल सिंह ने विज्ञापनदाता की सोच और मार्केट चैलेंज पर महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये। उन्होंने बताया कि आज बिग एडवर्टाइजर की सोच क्या है और लीपा की विज्ञापन पॉलिसी शक्तिकिस तरह बिग एडवर्टाइजर को अट्रैक्ट करने में सक्षम है।
एजेंडा डिस्कस करने के बाद राज्यों में लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के स्टेट प्र्सीडेट का चुनाव हुआ। जिसमें आन्ध्र प्रदेश से श्री सलीमुद्दीन, गुजरात से श्री कीर्ती ए व्यास, ऑडिशा से श्री बाबा लालातेन्दु केशरी, राजस्थान से श्री प्रलयंकर जोशी, झारखंड से श्री देवानन्द सिंह, पंजाब से श्री बलवीर सिंह सिद्धु स्टेट प्रेसीडेंट चुने गये।
लीड इंडिया एक्सीलेंसी अवार्डमें झारखंड से श्री देवानन्द सिंह, लीड इंडिया बेस्ट पब्लिशर, श्री अनुज अग्रवाल, लीड इंडिया बेस्ट अपकमिंग पब्लिशर, श्री कैलाश के सोनी, लीड इंडिया बेस्ट एडिटर, श्री सुनील पांडे, लीड इंडिया बेस्ट रिपोर्टर और श्री अखिलेश चन्द शुक्ला को उनके पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिये लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया गया।
एवार्ड कार्यक्रम के बाद बैठक को सम्बोधित करते हुए माननीय जस्टिस मार्कंडे काटजू (अध्यक्ष पीसीआई) ने कहा कि लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिशन लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो के हित में जो कार्य कर रही है वो बहुत प्रशंसनीय है। वो मीडिया के सबसे बड़े हितैषी हैं हालांकि उनकी कुछ बातों को मीडिया ने बड़े गलत ढंग से प्रस्तुत किया। वो लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के हित के लिये हमेशा खड़े हैं। एक घंटे के संबोधन में उन्होंने लोकतंत्र में समाचारपत्र प्रकाशकों के योगदान की भरपूर प्रशंसा करते हुए कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये।
इस अवसर पर बोलते हुये सुरेश च्वहानके ने कहा कि लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष सिंह ने बहुत अच्छे काम की शुरूआत की है। लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन जिस कार्यशैली से काम कर रही है वो नि:संदेह लघु एवं मध्यम समाचारपत्रों के हित में ठोस कार्य करेगी। उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया टीवी चैनल एसोसिएशनउनकी 250 चैनल के सदस्य वाली उनकी एसोसिएशन लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिशनके साथ है और हम मिलकर कार्य करेंगे।
डा0 सुनील मग्गो ने कि लघु एवं मध्यम समाचारपत्रों के लिये लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशनअतुलनीय योगदान दे रही है। उन्होंने लीपा की कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि पंखो से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती हैऔर लीपा के हौसले बहुत बुलंद हैं।

डॉ जूलियाना ने कहा कि मैं लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन को प्रकाशकों के हित में काम करने की बहुत शुभकामनाएं देती हूं उन्होंने यह भी जोड़ा की दुनिया में मैंने लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन जैसे संगठन बहुत कम देखे है जो इतने जज्बे के साथ कार्य कर रही हो।
बैठक के अंत में लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष सिंह ने उपस्थित सभी सदस्यों को धन्यवाद दिया।
(एजीएम से सबंधित सभी फोटो देखने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Monday, March 19, 2012

लीपा देगी डीएवीपी को लीगल नोटिस


सरकार की जनहित और जनजागरण की नीतियों के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाने वाली नोडल एजेंसी DAVP की वर्तमान कार्यप्रणाली उसकी भूमिका पर गंभीर प्रश्न उठा रही है. आखिर डीएवीपी के होने का औचित्य क्या है? क्या उसका गठन प्रकाशकों का दोहन करने के लिए हुआ है या मात्र एक मध्यस्त के रूप में हुआ है. डीएवीपी में व्याप्त भष्टाचार कोई नयी बात नहीं है. मुख्यत: डीएवीपी का काम सरकार की नीतियों की प्रसार व्यवस्था को सुनिश्चित करना है. जिसके लिए डीएवीपी पूरे भारत से समाचार पत्र/पत्रिकाओ को कुछ नियमो के अंतर्गत सूचीबद्ध करती है. डीएवीपी का काम मात्र इतना था की उसे सरकारी नीतियों और विभिन्न समाचार पत्र पत्रिकाओ के बीच कड़ी की भूमिका निभानी थी. लेकिन वर्त्तमान में आते आते डीएवीपी ने अपनी मध्यस्थ की भूमिका को भूलते हुए मनमानी शुरू कर दी. डीएवीपी के इस मनमाने रवैये से सबसे ज्यादा प्रकाशको को परेशानी का सामना करना पड़ता है. इम्पैनलमेंट के लिए प्रकाशक पूरी दौडधूप करता है लेकिन डीएवीपी (के कुचक्र) की दुर्व्यवस्था का शिकार हो जाता है. इम्पैनलमेंट की आड़ में डीएवीपी  मनमानी, भ्रष्टाचार और अनियमितता की सारी हदे पार कर चुकी है.
इम्पैनलमेंट के लिए डीएवीपी वर्ष में 2 बार आवेदन मंगवाती है. पहला फरवरी में और दूसरा अगस्त में. डीएवीपी की विज्ञापन नीति 2007 में स्पष्ट लिखा है की फरवरी में आवेदित अखबारों पर मई तक विचार किया जाएगा और 1 जुलाई से इम्पैनल्ड अखबारों का अनुबंध शुरू कर दिया जाएगा. ऐसे ही अगस्त में आवेदित समाचार पत्र/पत्रिकाओ पर नवम्बर तक विचार कर लिया जाएगा और उनका अनुबंध अगले वर्ष की 1 जनवरी से शुरू हो जाएगा. लेकिन डीएवीपी अपने इस नियम की सबसे ज्यादा धज्जियाँ उड़ाती है. डीएवीपी ने न सिर्फ विज्ञापन निति 2007 को अपने मनमाने ढंग से तोडा मरोड़ा बल्कि उसका जमकर उल्लंघन किया. डीएवीपी अपने मनमाने नियमो को लागू कर प्रकाशकों को भ्रमित करती रही है. हर बार आवेदन के बाद पीएसी की बैठक में निश्चित समय से अधिक देरी की जाती है. अगस्त 2011 में आवेदित अखबारों की सूची 3 फरवरी 2012 को जारी की गयी. जबकि उन इम्पैनल्ड अखबारों का अनुबंध 1 जनवरी 2012 से शुरु हो जाना चाहिए था.
स्थिति यह है की विज्ञापन नीति 2007 में निश्चित नियमो का पालन करने के बावजूद भी प्रकाशक यह सुनिश्चित नहीं कर सकता की उसके द्वारा जमा किये सभी दस्तावेज़ पूरे माने जाएँगे अथवा नहीं. विज्ञापन नीति 2007 में DAVP आवेदन के लिए कुछ मानदंड स्पष्ट रूप से निर्धारित हैं. लेकिन डीएवीपी हर अगले आवेदन पर कुछ नए प्रमाणपत्रो की मांग कर देती है. इतना ही नहीं अगस्त 2011 में एक गैरसरकारी सगठन की सदस्यता के प्रमाणपत्र की मांग करके DAVP  ने असंवैधानिकता और तानाशही का परिचय दिया. लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन के विरोध स्वरुप उन्हें इस प्रमाणपत्र की मांग को हटाना पड़ा था. लेकिन अब फिर फॉर्म में जोड़ दिया गया. दरअसल आवेदन प्रक्रिया के दौरान डीएवीपी का ध्यान पारदर्शिता पर नहीं बल्कि इस बात पर ज्यादा रहता है की किस प्रकार समाचार पत्र पत्रिकाओ की अधिक से अधिक छटनी की जा सके.
अब वक्त आ गया है की डीएवीपी में इम्पैन्लमेंट के लिए होने वाली आवेदन प्रक्रिया की खामियों का पुनरअवलोकन किया जाए ताकि डीएवीपी  में बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और दलालों पर नकेल कसी जा सके. उसके लिए जानना जरुरी है की डीएवीपी में बैठे कुछ अधिकारी और दलाल डीएवीपी की विज्ञापन नीति 2007 से किस तरह खेल रहे हैं. विज्ञापन नीति 2007 के अनुच्छेद 2 में लिखा है की पैनल द्वारा उन्ही समाचार पत्र/पत्रिकाओ को शामिल किया जाएगा जिन्हें देश के विभिन्न भागो में विभिन्न वर्गों द्वारा पढ़ा जाता है. लेकिन सर्वविदित है की बहुत से समाचार पत्र/पत्रिकाए है जो इस मानदंड को पूरा करने के बाद भी सूचिबद्ध नहीं हुए.
विज्ञापन नीति 2007 के अनुच्छेद 6 में स्पष्ट लिखा है की विभिन्न श्रेणियों के समाचारपत्र/पत्रिकाओ को विज्ञापन देने में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए पैनल सलाहकार समिति लघु एवं मध्यम समाचारपत्र/ पत्रिकाए, भाषाई, और पिछड़े व् सुदूरवर्ती इलाको में चल रहे अखबारों को प्राथमिकता के आधार पर सूचीबद्ध करने का ध्यान रखेगी. लेकिन इस मानदंड को पूरा करने वाले कई अख़बार पैनलबद्ध नहीं हो पाते जबकि दूसरे अखबार पैनलबद्ध हो जाते हैं.
विज्ञापन नीति 2007 का अनुच्छेद 9 डी. जी. के विवेकाधिकार की बात करता है. इसके अनुसार डी. जी. यदि चाहे तो अपने विवेकाधिकार से अखबारों को अस्थाई रूप से पैनलबद्ध कर सकता है बशर्ते वह अखबार डीएवीपी के निर्धारित नियम पूरे करता हो. उस अखबार को स्थाई रूप से पैनलबद्ध होने के लिए पीएसी के बैठक में रखा जाता है. यदि इस प्रक्रिया को सही माना जाए तब कुछ अखबारों के बजाये सभी अखबारों को पैनलबद्ध क्यों नहीं किया जा सकता जो नियम व शर्ते पूरी करते हो. ऐसा होगा तो डीएवीपी में बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारियो और दलालों का धंधा चौपट हो जाएगा.
इन कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बाद प्रश्न उठता है की डीएवीपी साल में दो बार आवेदन मंगवाता है इस दौरान प्रकाशक की फाइल पर हो रहे काम की जानकारी प्रकाशक को नहीं दी जाती. महत्वपूर्ण ये भी है की आखिर सब प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद किसी अखबार को कट पेस्ट, पूअर प्रिंटिंग या प्रिंट साइज छोटा बताकर अखबार को पैनाल्बद्ध नहीं किया जाता है. यदि डीएवीपी वाकई इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना चाहती तो इन सभी विषयों के लिए प्रकाशकों से एक अंडरटेकिंग लेती कि यदि इम्पैनलमेंट के बाद अगर कोई अखबार डीएवीपी के मापदंड के अनुसार नहीं छपेगा तो उसका इम्पैनलमेंट रद्द कर दिया जाएगा. प्रकाशकों के लिए यह सुविधा हों जाएगी कि इम्पैनलमेंट के बाद उन्हें कुछ आर्थिक मदद मिलेगी जिससे वह अपने अखबार को और भी उच्चस्तरीय बना सकेंगे और ज्यादा से ज्यादा लोगो के बीच उसका प्रसार हों पाएगा. इतना ही नहीं डीएवीपी भी ऐसे सक्षम अखबार के माध्यम से अपना उद्देश्य पूरा कर पाएगी. पहन्तु डीएवीपी ऐसा करना नहीं चाहती क्योंकि उसका उद्देश्य सुधार नहीं बल्कि प्रकाशकों को परेशान करना हो गया है.
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन प्रकाशकों के हित में यह मुद्दा उठा रही है की डीएवीपी में आवेदन की हुई फाइल को पीएसी की बैठक में रखने से पूर्व सम्बंधित प्रकाशक से सभी दस्तावजो की पूर्ती क्यों नहीं कराइ जाती. जिस तरह पत्र सूचना कार्यालय द्वारा मान्यता देने से पूर्व क्वेरी भेज कर दस्तावेज पूरे कराये जाते हैं. उसी तरह डीएवीपी द्वारा भी क्वेरी मांगी जा सकती है.
डीएवीपी की कार्यप्रणाली से लगता है की वह सुनियोजित तरीके से अखबारों को इम्पैनल्ड होने से रोक देना चाहती है. क्योंकि डीएवीपी में आवेदन के लिए और आवेदन के बाद जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वो प्रकाशक को अगला आवेदन होने तक अँधेरे में रखती है. बाकायदा डीएवीपी अगले आवेदन मांगने तक पहले वाले आवेदन की प्रक्रिया को लटका कर रखती है जिससे प्रकाशक के पास दुबारा आवेदन करने के लिए समय ही नहीं बच पता. डीएवीपी पूरी फाइल रिजेक्ट कर देती है जिसके बाद प्रकाशक को पुन: आवेदन करने के लिए पूरी वही प्रक्रिया अपनानी पड़ती है जिससे प्रकाशक का धन व समय दोनों बर्बाद होते हैं. जबकि फरवरी से मई के बीच या अगस्त से नवम्बर के बीच के समय में प्रकाशक से उन कमियों को पूरा करने के लिए कहा जा सकता है.
डीएवीपी द्वारा अखबार को इम्पैनलमेंट से ज्यादातर पूअर प्रिंटिंग और कट पेस्ट के आधार पर रिजेक्ट किया जाता है. क्या डीएवीपी बताएगी की पैनल सलाहकार समिति किस आधार पर यह तय करती है की अखबार का कंटेंट कौपी पेस्ट है. गौरतलब है की समाचार पत्र/पत्रिकाएँ खबरों के लिए समाचार एजेंसियों पर आधारित होते हैं. कई स्थानीय समाचार एजेंसियां लघु एवं माध्यम समाचार पत्रों को खबरे देती हैं, ऐसे में अन्य अखबारों में समाचारों की समानता होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. प्रश्न यह है की जब समिति के सामने कट पेस्ट का मैटर आता है तब  प्रकाशक से इस विषय पर स्पष्टीकरण क्यों नहीं माँगा जाता.
दूसरे यदि पूअर प्रिंटिंग की बात की जाए तो अखबारों से इम्पैनलमेंट के लिए आवेदन मंगाने के 3 महीने बाद (फरवरी से मई- अगस्त से नवंबर तक) पीएसी की बैठक बुलाई जाती है. तब तक प्रकाशकों की कड़ी मेहनत से छपवाए गए अखबार डीएवीपी कार्यालय में पड़े रहते हैं, जो पीएसी की मीटिंग तक जाते जाते रिकोर्ड नहीं रद्दी बन जाते हैं. बड़ा सवाल यह है की आखिर पीएसी की मीटिंग में 4 महीने के अंतराल में क्या कार्य होता है.
महत्पूर्ण यह भी है की जब तक कोई अखबार डीएवीपी में इम्पैनल्ड नहीं होता तब तक उस पर अपने नियम कानून चलाने का डीएवीपी को कोई अधिकार नहीं है. इमपैनल्ड होने के बाद से उस पर डीएवीपी से नियम कानून लागू जरूर होने चाहिए. क्योंकि सरकार का मकसद इन अखबारों के माध्यम से अपना प्रचार करना ही है अत: दुनिया भर के प्रमाणपत्र मांगने वाली डीएवीपी प्रकाशकों से यह अंडरटेकिंग क्यों नहीं लेती की यदि डीएवीपी इम्पैनलमेंट के बाद उसका अखबार डीएवीपी के मानदंडो पर खरा ना उतरे तो उसका इम्पैनलमेंट रद्द कर दिया जाए. लीड इंडिया पब्लिशेर्स एसोसिएशन का मानना है की इस तरह कार्यवाई पूरी करवाए बिना किसी अखबार के आवेदन को रद्द किए जाने की प्रक्रिया दोषपूर्ण है.
लीड इंडिया पब्लिशेर्स एसोसिएशन लघु एवं माध्यम समाचार पत्रों के हित में यह मांग करती है की जब कोई अखबार डीएवीपी में इमपैनेल्मेंट के लिए आवेदन करे तो डीएवीपी पीएसी तक होने वाले अन्तराल में प्रकाशक से जरूरी दतावेज़ पूरे कराये. उसके बाद ही आवेदित अखबारों को पीएसी के समक्ष रखे.यदि ऐसा नहीं होता है तो आवेदन प्रक्रिया और पीएसी की बैठक के बीच इतना लम्बा समय रखने का औचित्य क्या है.
लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन यह भी मांग करती है यदि कोई प्रकाशक समय रहते निर्धारित नियम पूरा करने में असमर्थ रहे तब उसकी फाइल को अगली पीएसी मीटिंग तक एक्सटेंड कर दी जाये. फाइल को डम्प करने की बजाये यदि प्रकाशक से उसके आगे की प्रक्रिया पूरी करने के लिए कहा जाये, तो न सिर्फ भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी बल्कि डीएवीपी और प्रकाशको का कीमती समय बर्बाद होने से भी बचेगा.
तीसरी बात डीएवीपी द्वारा अखबार मालिको से अखबार का नियमितता प्रमाणपत्र माँगा जाता है, जिसे डीपीआरओ द्वारा जारी किया जाता है. यह व्यवहारिक रूप से तार्किक नहीं है. अक्सर अख़बार के नियमित रूप से प्रकाशित होने के बाद भी डीपीआरओ द्वारा उसे नियमितता प्रमाणपत्र  देने में देरी की जाती है या परेशान किया जाता है. यह प्रक्रिया भ्रष्टाचार का कारक बन रही है. यदि डीएवीपी अखबार की नियमितता के बारे में जानना चाहती है तो डीएवीपी द्वारा खुद अखबारों को अपने पास मंगवाने की व्यवस्था की जा सकती है. डीएवीपी यह व्यवस्था कर सकती है की इमपैनल्ड होने के इच्छुक सभी अखबार नियमित रूप से अपने अखबारों को डीएवीपी कार्यालय भेजें. इस तरह न सिर्फ अखबारों की नियमितता की जाँच आसानी से संभव होगी बल्कि इसे भ्रष्टाचार का विषय बनाने से भी रोका जा सकेगा.
लघु एवं माध्यम समाचार पत्रों के हित में लिपा इन सब विषयों को डीएवीपी के समक्ष रखेगी ताकि इमपैनल्मेंट की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जा सके. यदि डीएवीपी द्वारा इन बिन्दुओ पर विचार नहीं किया जाता है तो लीपा डीएवीपी को कानूनी नोटिस भेजेगी. प्रकाशकों के हित की इस लड़ाई को यदि कोर्ट में भी लड़ना पड़ा तो इसके लिए लिपा पूरी तरह तैयार है.
नोट: लेखक सुभाष सिंह, लीड इंडिया ग्रुप चेयरमैन / मुख्य संपादक व लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन (लीपा) के अध्यक्ष है.